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28-06-2025

बिन COPPER इंडिया कैसे बनेगा आत्मनिर्भर?

  •  याद है ना मई 2018 में एक दंगा हुआ और वेदांता ग्रुप को तमिलनाडु के तुतिकोरिन में अपना कॉपर प्लांट बंद करना पड़ गया। इस प्लांट की कैपेसिटी 4 लाख टन सालाना की थी। इस प्लांट पर ताले लगते ही भारत कॉपर के एक्सपोर्ट से नेट इंपोर्टर हो गया। मोदी सरकार आत्मनिर्भर भारत का प्लान पुश कर रही है लेकिन तुतिकोरिन जितना स्ट्रेटेजिक नेशनल असैट बचा ही नहीं पाई। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा...शुरुआत में कोर्ट का रवैया नरम था लेकिन फिर इसपर हमेशा के लिए ताला लग गया। कॉपर भारत की इकोनॉमी के हाईटेक की ओर ट्रांजिशन का सबसे बड़ा ग्रोथ फैक्टर है। इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ ही ईवी, विंड टर्बाइन और सोलर तक हर सैक्टर के लिए कॉपर क्रिटिकल मेटल है। भारत सरकार का वर्ष 2030 तक 500 गीगावॉट ग्रीन एनर्जी कैपेसिटी खड़ी करने का है जो बिना कॉपर के संभव नहीं है। और जिस तेजी से देश में शहरीकरण हो रहा है उसमें घरों की बिजली फिटिंग के लिए भी कॉपर की बहुत ज्यादा जरूरत है। साथ में लगी टेबल से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2017-18 में भारत का कॉपर प्रॉडक्शन 7.66 लाख टन था जो इस प्लांट के बंद होते ही घटकर 3.75 लाख टन रह गया। और बाद के सालों में हालांकि डिमांड बहुत तेजी से बढ़ी है लेकिन प्रॉडक्शन सीमित होने के कारण करीब 5 लाख टन (डिमांड का करीब 50 परसेंट) इंपोर्ट करना पड़ रहा है। रिपोर्ट कहती हैं कि भारत को हर साल कॉपर इंपोर्ट करने पर 27-28 हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। खबर है कि कॉपर की ग्लोबल सप्लाई चेन प्रेशर में है जिसके कारण इसकी प्राइस बढ़ रही है। ऐसे में भारत सरकार ने इन हालातों पर चिंता जताते हुए नई सप्लाई लाइन खोलने की बात कही है। सरकार घरेलू स्तर पर रिफाइंड कॉपर के प्रॉडक्शन को बढ़ाने के उपायों पर भी विचार कर रही है और इसमें एफडीआई भी शामिल है। डेटा कहता है कि भारत अपनी 90 परसेंट से अधिक कॉपर कंसंट्रेट की डिमांड इंपोर्ट से पूरी करता है। रिपोर्ट कहती हैं कि वर्ष 2030 तक कॉपर की डिमांड दोगुनी हो जाएगी। अभी देश में 5.73 लाख मीट्रिक टन रिफाइंड कॉपर का उत्पादन होता है जबकि डिमांड 18 लाख टन की होगी। रिपोर्ट कहती हैं कि चिली और पेरू के साथ चल रही बाइलेटरल ट्रेड एग्रीमेंट्स की बातचीत में भारत कॉपर चैप्टर को शामिल करने के प्लान पर काम कर रहा है। हालांकि इंडोनेशिया भी बड़ा कॉपर एक्सपोर्टर है लेकिन इसने कॉपर  सप्लाई पर लगाम लगा रखी है। सरकार की चिंता यह भी है कि पेरु और चिली ने चीन की कंपनियों के साथ लॉन्गटर्म एग्रीमेंट कर रखे हैं। साथ रिसोर्स नेशनलिज्म भी एक बड़ा चैलेंज साबित हो सकता है। रिसोर्स नेशनलिज्म संसाधनों के एक्सपोर्ट को कंट्रोल करना। चीन के रेयर अर्थ मिनरल्स का एक्सपोर्ट बैन कर देने से हथियार, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और कंज्यूमर गुड्स की ग्लोबल सप्लाई चेन पर असर पड़ा है। कुछ महीने पहले अडानी ग्रुप ने गुजरात के कच्छ में 5 लाख टन की कैपेसिटी वाला कॉपर प्लांट शुरू किया है। लेकिन रिपोर्ट कहती हैं कि यह कैप्टिव (कंपनी की अपनी जरूरतों के लिए) प्लांट है। 2013-14 से 2017-18 के बीच भारत में रिफाइंड कॉपर की प्रॉडक्शन कैपेसिटी 9.6 सीएजीआर से बढ़ रही थी और उस समय भारत नेट एक्सपोर्ट था। 

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बिन COPPER इंडिया कैसे बनेगा आत्मनिर्भर?

 याद है ना मई 2018 में एक दंगा हुआ और वेदांता ग्रुप को तमिलनाडु के तुतिकोरिन में अपना कॉपर प्लांट बंद करना पड़ गया। इस प्लांट की कैपेसिटी 4 लाख टन सालाना की थी। इस प्लांट पर ताले लगते ही भारत कॉपर के एक्सपोर्ट से नेट इंपोर्टर हो गया। मोदी सरकार आत्मनिर्भर भारत का प्लान पुश कर रही है लेकिन तुतिकोरिन जितना स्ट्रेटेजिक नेशनल असैट बचा ही नहीं पाई। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा...शुरुआत में कोर्ट का रवैया नरम था लेकिन फिर इसपर हमेशा के लिए ताला लग गया। कॉपर भारत की इकोनॉमी के हाईटेक की ओर ट्रांजिशन का सबसे बड़ा ग्रोथ फैक्टर है। इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ ही ईवी, विंड टर्बाइन और सोलर तक हर सैक्टर के लिए कॉपर क्रिटिकल मेटल है। भारत सरकार का वर्ष 2030 तक 500 गीगावॉट ग्रीन एनर्जी कैपेसिटी खड़ी करने का है जो बिना कॉपर के संभव नहीं है। और जिस तेजी से देश में शहरीकरण हो रहा है उसमें घरों की बिजली फिटिंग के लिए भी कॉपर की बहुत ज्यादा जरूरत है। साथ में लगी टेबल से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2017-18 में भारत का कॉपर प्रॉडक्शन 7.66 लाख टन था जो इस प्लांट के बंद होते ही घटकर 3.75 लाख टन रह गया। और बाद के सालों में हालांकि डिमांड बहुत तेजी से बढ़ी है लेकिन प्रॉडक्शन सीमित होने के कारण करीब 5 लाख टन (डिमांड का करीब 50 परसेंट) इंपोर्ट करना पड़ रहा है। रिपोर्ट कहती हैं कि भारत को हर साल कॉपर इंपोर्ट करने पर 27-28 हजार करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। खबर है कि कॉपर की ग्लोबल सप्लाई चेन प्रेशर में है जिसके कारण इसकी प्राइस बढ़ रही है। ऐसे में भारत सरकार ने इन हालातों पर चिंता जताते हुए नई सप्लाई लाइन खोलने की बात कही है। सरकार घरेलू स्तर पर रिफाइंड कॉपर के प्रॉडक्शन को बढ़ाने के उपायों पर भी विचार कर रही है और इसमें एफडीआई भी शामिल है। डेटा कहता है कि भारत अपनी 90 परसेंट से अधिक कॉपर कंसंट्रेट की डिमांड इंपोर्ट से पूरी करता है। रिपोर्ट कहती हैं कि वर्ष 2030 तक कॉपर की डिमांड दोगुनी हो जाएगी। अभी देश में 5.73 लाख मीट्रिक टन रिफाइंड कॉपर का उत्पादन होता है जबकि डिमांड 18 लाख टन की होगी। रिपोर्ट कहती हैं कि चिली और पेरू के साथ चल रही बाइलेटरल ट्रेड एग्रीमेंट्स की बातचीत में भारत कॉपर चैप्टर को शामिल करने के प्लान पर काम कर रहा है। हालांकि इंडोनेशिया भी बड़ा कॉपर एक्सपोर्टर है लेकिन इसने कॉपर  सप्लाई पर लगाम लगा रखी है। सरकार की चिंता यह भी है कि पेरु और चिली ने चीन की कंपनियों के साथ लॉन्गटर्म एग्रीमेंट कर रखे हैं। साथ रिसोर्स नेशनलिज्म भी एक बड़ा चैलेंज साबित हो सकता है। रिसोर्स नेशनलिज्म संसाधनों के एक्सपोर्ट को कंट्रोल करना। चीन के रेयर अर्थ मिनरल्स का एक्सपोर्ट बैन कर देने से हथियार, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और कंज्यूमर गुड्स की ग्लोबल सप्लाई चेन पर असर पड़ा है। कुछ महीने पहले अडानी ग्रुप ने गुजरात के कच्छ में 5 लाख टन की कैपेसिटी वाला कॉपर प्लांट शुरू किया है। लेकिन रिपोर्ट कहती हैं कि यह कैप्टिव (कंपनी की अपनी जरूरतों के लिए) प्लांट है। 2013-14 से 2017-18 के बीच भारत में रिफाइंड कॉपर की प्रॉडक्शन कैपेसिटी 9.6 सीएजीआर से बढ़ रही थी और उस समय भारत नेट एक्सपोर्ट था। 


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