इंडिया-यूएस ट्रेड डील के रास्ते में एग्रीकल्चर, डेयरी और जीएम क्रॉप बड़े स्पॉइलस्पोर्ट साबित हो रहे हैं। एग्री प्रॉडक्ट्स और डेयरी की चर्चा तो आप महीनों से सुनते आ रहे हैं लेकिन अब अमेरिका ने जीएम क्रॉप्स के लिए मार्केट एक्सैस देने की भी शर्त लगा दी है। दोनों देशों के पास किसी शुरुआती डील तक पहुंचने के लिए 9 जुलाई तक का समय है उसके बाद ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ लागू हो जाएंगे। हालांकि रिपोर्ट कहती हैं कि भारत सरकार ने अमेरिका की इस शर्त के आगे ज्यादा नहीं झुकने का फैसला कर लिया है। क्योंकि सोयाबीन, मक्का और बादाम आदि कई एग्री प्रॉडक्ट्स के लिए मार्केट एक्सैस को पहले ही बढ़ाया जा चुका है। डेयरी प्रॉडक्ट्स के लिए अमेरिका को मांसाहारी चारे के सर्टिफिकेट की शर्त पूरी करने के लिए कह दिया गया है। जहां तक जीएम क्रॉप की बात है तो भारत में सिर्फ बीटी कॉटन को ही कमर्शियल हार्वेस्ट की मंजूरी है। 4 से 10 जून के बीच नई दिल्ली में हुई बातचीत में दोनों पक्षों के बीच मार्केट एक्सैस, फूड आइटम्स में हेल्थ एंड सेफ्टी रेगुलेशन, ट्रेड में टेक्निकल बैरियर, डिजिटल ट्रेड, कस्टम्स और ट्रेड फैसिलिटेशन और लीगल फ्रेमवर्क पर चर्चा हुई थी। भारत ने अमेरिका द्वारा स्टील और एल्युमिनियम पर इंपोर्ट टैरिफ बढ़ा देने का भी विरोध करते हुए डब्ल्यूटीओ में अपील की है। सरकारी अधिकारियों के अनुसार ट्रंप प्रशासन के पास मोस्ट फेवर्ड नेशन रेट से नीचे टैरिफ घटाने की पावर नहीं है- इसके लिए अमेरिकी कांग्रेस की अनुमति लेनी होगी। हालांकि अमेरिकी सरकार कुछ देशों, जिनमें भारत भी शामिल है, से रेसिप्रोकल टैरिफ हटा सकती है। अमेरिका कुछ इंडस्ट्रियल गुड्स, ऑटोमोबाइल्स, वाइन, पेट्रोकेमिकल प्रॉडक्ट्स, डेयरी और कुछ एग्री प्रॉडक्ट्स पर भी रियायतें चाहता है। चर्चा है कि भारत ने डेयरी और एग्रीकल्चर में न्यूनतम आयात मूल्य (मिनिमम इंपोर्ट प्राइस) या इंपोर्ट कोटा लागू करने की बात कही है। लेदर गुड्स के लिए 5-7' की बेसिक कस्टम ड्यूटी को भी घटाया जाए। भारत व अमेरिका का फोकस अक्टूबर 25 तक बाइलेटरल ट्रेड एग्रीमेंट के पहले चरण पर सहमति बनाने का है। दोनों देश 2030 तक $500 बिलियन डॉलर के ट्रेड का टार्गेट लेकर चल रहे हैं।
हड़बड़ी ठीक नहीं: डब्ल्यूटीओ में भारत की पूर्व प्रतिनिधि अंजलि प्रसाद ने कहा है कि अमेरिका के साथ ट्रेड डील में भारत को हड़बड़ी करने की जरूरत नहीं है। भारत डोमेस्टिक मार्केट-लेड इकोनॉमी है, ट्रेड-लेड नहीं। ट्रेड का भारत के जीडीपी में शायद 2 परसेंट से भी कम शेयर है। हालांकि हायर टैरिफ से शॉर्ट टर्म में एक्सपोर्ट थोड़ा घट सकता है। हालांकि इंडियन गुड्स के अमेरिकी इंपोर्टर ही अमेरिका पर टैरिफ घटाने के लिए प्रेशर डाल सकते हैं। पर कैपिटा इनकम के हिसाब से भारत एक लो-मिडल इनकम कंट्री हैं। इसलिए इंडिया और अमेरिका की इकोनॉमी ना तो बराबर है न ही एक लेवल प्लेइंग फील्ड पर बातचीत कर रही है।
