यूरोपीय संघ ने एक बड़े फैसले में कहा है कि 68.9 बिलियन डॉलर या उससे अधिक वेल्यूएशन वाली चीनी कंपनियों को मेडिकल डिवाइस की सरकारी खरीद से बैन किया जा रहा है। ईयू के अनुसार यूरोपीय कंपनियों को चीन में मार्केट एक्सैस नहीं दिया जा रहा है इसे देखते हुए यह एक्शन लिया जा रहा है। ईयू ने वर्ष 2022 में लागू इंटरनेशनल प्रोक्यॉरमेंट इंस्ट्रूमेंट के तहत यह पहला फैसला लिया है। इस कानून का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि यूरोपीय कंपनियों को अन्य देशों में वही मार्केट एक्सैस मिले जो यूरोपीय संघ अपने बाजार में देता है। माना जा रहा है इस बड़ी कार्यवाही से ईयू और चीन के बीच पहले से चल रहे ट्रेडवॉर जैसे हालात और गंभीर हो सकते हैं। ईयू पहले ही चीनी इलेक्ट्रिक गाडिय़ों पर टैरिफ लगा चुका है। पलटवार करते हुए चीन ने यूरोप की ब्रांडी बैन कर दी है और रेयर अर्थ मेटल के एक्सपोर्ट पर कंट्रोल लागू कर दिया है। यूरोपीय संघ चाहता है कि ये सभी मुद्दे जुलाई में होने वाले ईयू-चीन शिखर सम्मेलन में हल किए जाएं।ईयू ने यह भी कहा कि जिन सरकारी कॉन्ट्रेक्टस की वेल्यू पांच मिलियन यूरो से अधिक होगी, उनमें चीनी कंपनियां भाग नहीं ले सकेंगी। ईयू के अनुसार, 2023 में उसका मेडिकल टेक्नोलॉजी मार्केट लगभग 150 बिलियन यूरो का था, जिसमें से 70 परसेंट खरीद सरकारी टेंडर से होती है। हालांकि पांच मिलियन यूरो से अधिक के टेंडर केवल 4 परसेंट होते हैं लेकिन इनकी वेल्यू 150 बिलियन यूरो में से 90 बिलियन यूरो होती है। नई पॉलिसी में यह भी शर्त लगाई गई है कि यदि कोई चीनी कंपनी टेंडर जीतती है तो उसे यह भी एफिडेविट देना होगा कि खरीदी गई मेडिकल डिवाइस में चीनी कंपोनेंट 50 परसेंट से अधिक न हो। नए नियम इमेजिंग इक्विपमेंट (एक्स-रे आदि), प्रॉस्थेटिक्स (कृत्रिम अंग), और मेडिकल गारमेंट्स पर भी लागू होंगे।