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26-06-2025

भारत बनेगा ईवी मैन्युफैक्चरिंग का ग्लोबल पावरहाउस

  •  न्यूयॉर्क स्थित रोडियम ग्रुप की लेटेस्ट रिपोर्ट के अनुसार भारत की इलेक्ट्रिक फोर व्हीलर कैपेसिटी में जबरदस्त ग्रोथ देखने को मिलेगी। अभी जहां यह केवल 0.2 मिलियन (2 लाख) यूनिट्स है, वहीं 2030 तक यह बढक़र 25 लाख यूनिट्स हो जाएगी। इससे भारत चीन, यूरोप और यूएस के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ईवी मैन्युफैक्चरर बन जाएगा। रिपोर्ट बताती है कि भारत की ईवी मैन्युफै क्चरिंग कैपेसिटी घरेलू डिमांड से 11 लाख से 21 लाख यूनिट्स अधिक होगी। इसलिए भारत को सरप्लस कैपेसिटी का सही यूटिलाइजेशन करने के लिए एक्सपोर्ट मार्केट्स पर फोकस करना होगा। हालांकि यह इतना आसान नहीं होगा क्योंकि एक्सपोर्ट मार्केट में मेड इन इंडिया ईवी को मेड इन चायना ईवी से मुकाबला करने के लिए कॉस्ट एफीशिएंसी पर काम करना होगा। रोडियम ग्रुप के अनुसार 2024 में भारत की ईवी डिमांड लगभग 1 लाख यूनिट्स थी जो 2030 तक 4 लाख से 14 लाख यूनिट्स तक पहुंच सकती है। भारत में हर साल लगभग 60 लाख लाइट मोटर वेहीकल बिकते हैं जिनमें 43 लाख कार होती हैं। ऐसे में माना जा सकता है कि 2030 तक ईवी का शेयर 7 से 23 परसेंट हो सकता है।  पिछले वित्त वर्ष में भारत के ईवी मार्केट में टाटा मोटर्स, एमजी मोटर और महिन्द्रा का कुल शेयर करीब 90 परसेंट था। 2030 तक भारत की प्रोडक्शन कैपेसिटी चीन (2.9 करोड़), यूरोप (90 लाख), और यूएस (60 लाख) से कम होगी, लेकिन वह जापान और साउथ कोरिया को पीछे छोड़ देगा। जापान की अनुमानित क्षमता 14 लाख यूनिट्स और साउथ कोरिया की 19 लाख यूनिट्स रहेगी। भारत की ईवी पॉलिसी में इंडस्ट्रियल पॉलिसी, कंज्यूमर इंसेंटिव्स, और इंपोर्ट पर ज्यादा टेक्स लगाकर लोकल मैन्युफैक्चरिंग को सपोर्ट करना है। देश ने लोकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए इंपोर्ट टैरिफ को 70 से 100 परसेंट तक रखा है। इससे घरेलू प्रोडक्शन को तो फायदा हुआ है लेकिन कस्टमर चॉइस सीमित हो गई है और गाडिय़ों की लागत बढ़ गई है। बैटरी के मामले में भी भारत ने तेजी से प्रगति की है। रिपोर्ट कहती है कि भारत सेल्स और मॉड्यूल्स दोनों में एक्टिव हो गया है और चाइना, यूएस, और यूरोप के बाद सबसे बड़ा मॉड्यूल प्रोड्यूसर बनने की दिशा में अग्रसर है। हालांकि, रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत की बैटरी कैपेसिटी ग्रोथ मुख्य रूप से अभी निर्माणाधीन या नए घोषित प्रोजेक्ट्स पर आधारित है, जिससे इसमें डिलीवरी रिस्क बना रहता है। कुल मिलाकर, रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का ईवी सेक्टर एक अलग मॉडल अपना रहा है जो कि मेक इन इंडिया फॉर द वल्र्ड की सोच को दर्शाता है। लेकिन ग्लोबल कंपटीशन में बने रहने के लिए भारत को कॉस्ट एफिशिएंसी, टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन और क्वॉलिटी स्टैंडर्ड्स पर लगातार काम करते रहना होगा।

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भारत बनेगा ईवी मैन्युफैक्चरिंग का ग्लोबल पावरहाउस

 न्यूयॉर्क स्थित रोडियम ग्रुप की लेटेस्ट रिपोर्ट के अनुसार भारत की इलेक्ट्रिक फोर व्हीलर कैपेसिटी में जबरदस्त ग्रोथ देखने को मिलेगी। अभी जहां यह केवल 0.2 मिलियन (2 लाख) यूनिट्स है, वहीं 2030 तक यह बढक़र 25 लाख यूनिट्स हो जाएगी। इससे भारत चीन, यूरोप और यूएस के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ईवी मैन्युफैक्चरर बन जाएगा। रिपोर्ट बताती है कि भारत की ईवी मैन्युफै क्चरिंग कैपेसिटी घरेलू डिमांड से 11 लाख से 21 लाख यूनिट्स अधिक होगी। इसलिए भारत को सरप्लस कैपेसिटी का सही यूटिलाइजेशन करने के लिए एक्सपोर्ट मार्केट्स पर फोकस करना होगा। हालांकि यह इतना आसान नहीं होगा क्योंकि एक्सपोर्ट मार्केट में मेड इन इंडिया ईवी को मेड इन चायना ईवी से मुकाबला करने के लिए कॉस्ट एफीशिएंसी पर काम करना होगा। रोडियम ग्रुप के अनुसार 2024 में भारत की ईवी डिमांड लगभग 1 लाख यूनिट्स थी जो 2030 तक 4 लाख से 14 लाख यूनिट्स तक पहुंच सकती है। भारत में हर साल लगभग 60 लाख लाइट मोटर वेहीकल बिकते हैं जिनमें 43 लाख कार होती हैं। ऐसे में माना जा सकता है कि 2030 तक ईवी का शेयर 7 से 23 परसेंट हो सकता है।  पिछले वित्त वर्ष में भारत के ईवी मार्केट में टाटा मोटर्स, एमजी मोटर और महिन्द्रा का कुल शेयर करीब 90 परसेंट था। 2030 तक भारत की प्रोडक्शन कैपेसिटी चीन (2.9 करोड़), यूरोप (90 लाख), और यूएस (60 लाख) से कम होगी, लेकिन वह जापान और साउथ कोरिया को पीछे छोड़ देगा। जापान की अनुमानित क्षमता 14 लाख यूनिट्स और साउथ कोरिया की 19 लाख यूनिट्स रहेगी। भारत की ईवी पॉलिसी में इंडस्ट्रियल पॉलिसी, कंज्यूमर इंसेंटिव्स, और इंपोर्ट पर ज्यादा टेक्स लगाकर लोकल मैन्युफैक्चरिंग को सपोर्ट करना है। देश ने लोकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए इंपोर्ट टैरिफ को 70 से 100 परसेंट तक रखा है। इससे घरेलू प्रोडक्शन को तो फायदा हुआ है लेकिन कस्टमर चॉइस सीमित हो गई है और गाडिय़ों की लागत बढ़ गई है। बैटरी के मामले में भी भारत ने तेजी से प्रगति की है। रिपोर्ट कहती है कि भारत सेल्स और मॉड्यूल्स दोनों में एक्टिव हो गया है और चाइना, यूएस, और यूरोप के बाद सबसे बड़ा मॉड्यूल प्रोड्यूसर बनने की दिशा में अग्रसर है। हालांकि, रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत की बैटरी कैपेसिटी ग्रोथ मुख्य रूप से अभी निर्माणाधीन या नए घोषित प्रोजेक्ट्स पर आधारित है, जिससे इसमें डिलीवरी रिस्क बना रहता है। कुल मिलाकर, रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का ईवी सेक्टर एक अलग मॉडल अपना रहा है जो कि मेक इन इंडिया फॉर द वल्र्ड की सोच को दर्शाता है। लेकिन ग्लोबल कंपटीशन में बने रहने के लिए भारत को कॉस्ट एफिशिएंसी, टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन और क्वॉलिटी स्टैंडर्ड्स पर लगातार काम करते रहना होगा।


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