TOP

ई - पेपर Subscribe Now!

ePaper
Subscribe Now!

Download
Android Mobile App

Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

09-12-2025

जानें टाइप-5 डायबिटीज के बारे में

  •  दुनिया भर में जहां एक ओर ब्लड शुगर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, वहीं एक कम पहचाने गए शुगर के प्रकार ‘टाइप-5 डायबिटीज’ पर भी अब दुनिया का ध्यान जा रहा है। यह बीमारी कुपोषण से जुड़ी होती है। लगभग 75 साल पहले पहली बार इस बीमारी का जिक्र हुआ था, लेकिन तब इसे ठीक से समझा नहीं गया था। अब थाईलैंड के बैंकॉक में हुई इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (आईडीएफ) की बैठक में इसे औपचारिक रूप से टाइप-5 डायबिटीज नाम दिया गया है। यह बीमारी अक्सर दुबले-पतले और कमजोर युवाओं में पाई जाती है। सबसे पहले इसका जिक्र 1955 में जमैका में हुआ था, और तब इसे जे-टाइप डायबिटीज कहा गया था। 1960 के दशक में भारत, पाकिस्तान और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में कुपोषित लोगों में भी यह बीमारी देखी गई। 1985 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे डायबिटीज की एक अलग किस्म के रूप में मान्यता दी थी, लेकिन 1999 में यह मान्यता वापस ले ली गई, क्योंकि उस समय इसके बारे में पर्याप्त शोध और प्रमाण नहीं थे। टाइप-5 डायबिटीज एक कुपोषण से जुड़ी हुई मधुमेह की बीमारी है। यह आमतौर पर कमजोर और कुपोषित किशोरों व युवाओं में पाई जाती है, खासकर गरीब और मध्यम आय वाले देशों में। इस बीमारी से दुनिया भर में लगभग 2 से 2.5 करोड़ लोग प्रभावित हैं, जिनमें ज्यादातर लोग एशिया और अफ्रीका में रहते हैं। पहले यह माना जाता था कि यह बीमारी इंसुलिन के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया कम होने (इंसुलिन रेजिस्टेंस) के कारण होती है। लेकिन अब पता चला है कि इन लोगों के शरीर में इंसुलिन बन ही नहीं पाता, जो पहले ध्यान नहीं दिया गया था। प्रोफेसर मेरीडिथ हॉकिंस, कहती हैं कि यह खोज हमारे इस बीमारी को समझने के तरीके को पूरी तरह बदल देती है और इसके इलाज को लेकर नया रास्ता दिखाती है। 2022 में डायबिटीज केयर नामक जर्नल में छपे एक अध्ययन में, डॉ. हॉकिंस और उनके सहयोगियों (वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज से) ने यह साबित किया कि यह बीमारी टाइप-2 डायबिटीज (जो मोटापे के कारण होती है) और टाइप-1 डायबिटीज (जो एक ऑटोइम्यून बीमारी है) से बिल्कुल अलग है। हालांकि डॉक्टरों को अब भी यह ठीक से समझ नहीं आ पाया है कि टाइप-5 डायबिटीज के मरीजों का इलाज कैसे किया जाए, क्योंकि कई मरीज बीमारी का पता चलने के एक साल के भीतर ही नहीं बच पाते। हॉकिन्स के अनुसार, इस बीमारी को पहले ठीक से पहचाना नहीं गया और न ही इसे अच्छे से समझा गया। कुपोषण से होने वाली डायबिटीज टीबी से ज्यादा है और लगभग एचआईवी/एड्स जितनी ही आम है। कोई आधिकारिक नाम न होने के कारण मरीजों की पहचान करने या असरदार इलाज ढूंढने में दिक्कत आ रही थी। इस बीमारी को अच्छे से समझने और इसका इलाज ढूंढने के लिए, आईडीएफ ने एक टीम बनाई है। इस टीम को अगले दो सालों में टाइप 5 डायबिटीज के लिए औपचारिक पहचान और इलाज के नियम बनाने का काम सौंपा गया है। यह टीम बीमारी की पहचान के मापदंड तय करेगी और इसके इलाज के लिए नियम बनाएगी। यह रिसर्च में मदद के लिए एक ग्लोबल रजिस्ट्री भी बनाएगी और दुनिया भर के स्वास्थ्य कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए अध्ययन सामग्री तैयार करेगी।

Share
जानें टाइप-5 डायबिटीज के बारे में

 दुनिया भर में जहां एक ओर ब्लड शुगर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, वहीं एक कम पहचाने गए शुगर के प्रकार ‘टाइप-5 डायबिटीज’ पर भी अब दुनिया का ध्यान जा रहा है। यह बीमारी कुपोषण से जुड़ी होती है। लगभग 75 साल पहले पहली बार इस बीमारी का जिक्र हुआ था, लेकिन तब इसे ठीक से समझा नहीं गया था। अब थाईलैंड के बैंकॉक में हुई इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (आईडीएफ) की बैठक में इसे औपचारिक रूप से टाइप-5 डायबिटीज नाम दिया गया है। यह बीमारी अक्सर दुबले-पतले और कमजोर युवाओं में पाई जाती है। सबसे पहले इसका जिक्र 1955 में जमैका में हुआ था, और तब इसे जे-टाइप डायबिटीज कहा गया था। 1960 के दशक में भारत, पाकिस्तान और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में कुपोषित लोगों में भी यह बीमारी देखी गई। 1985 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे डायबिटीज की एक अलग किस्म के रूप में मान्यता दी थी, लेकिन 1999 में यह मान्यता वापस ले ली गई, क्योंकि उस समय इसके बारे में पर्याप्त शोध और प्रमाण नहीं थे। टाइप-5 डायबिटीज एक कुपोषण से जुड़ी हुई मधुमेह की बीमारी है। यह आमतौर पर कमजोर और कुपोषित किशोरों व युवाओं में पाई जाती है, खासकर गरीब और मध्यम आय वाले देशों में। इस बीमारी से दुनिया भर में लगभग 2 से 2.5 करोड़ लोग प्रभावित हैं, जिनमें ज्यादातर लोग एशिया और अफ्रीका में रहते हैं। पहले यह माना जाता था कि यह बीमारी इंसुलिन के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया कम होने (इंसुलिन रेजिस्टेंस) के कारण होती है। लेकिन अब पता चला है कि इन लोगों के शरीर में इंसुलिन बन ही नहीं पाता, जो पहले ध्यान नहीं दिया गया था। प्रोफेसर मेरीडिथ हॉकिंस, कहती हैं कि यह खोज हमारे इस बीमारी को समझने के तरीके को पूरी तरह बदल देती है और इसके इलाज को लेकर नया रास्ता दिखाती है। 2022 में डायबिटीज केयर नामक जर्नल में छपे एक अध्ययन में, डॉ. हॉकिंस और उनके सहयोगियों (वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज से) ने यह साबित किया कि यह बीमारी टाइप-2 डायबिटीज (जो मोटापे के कारण होती है) और टाइप-1 डायबिटीज (जो एक ऑटोइम्यून बीमारी है) से बिल्कुल अलग है। हालांकि डॉक्टरों को अब भी यह ठीक से समझ नहीं आ पाया है कि टाइप-5 डायबिटीज के मरीजों का इलाज कैसे किया जाए, क्योंकि कई मरीज बीमारी का पता चलने के एक साल के भीतर ही नहीं बच पाते। हॉकिन्स के अनुसार, इस बीमारी को पहले ठीक से पहचाना नहीं गया और न ही इसे अच्छे से समझा गया। कुपोषण से होने वाली डायबिटीज टीबी से ज्यादा है और लगभग एचआईवी/एड्स जितनी ही आम है। कोई आधिकारिक नाम न होने के कारण मरीजों की पहचान करने या असरदार इलाज ढूंढने में दिक्कत आ रही थी। इस बीमारी को अच्छे से समझने और इसका इलाज ढूंढने के लिए, आईडीएफ ने एक टीम बनाई है। इस टीम को अगले दो सालों में टाइप 5 डायबिटीज के लिए औपचारिक पहचान और इलाज के नियम बनाने का काम सौंपा गया है। यह टीम बीमारी की पहचान के मापदंड तय करेगी और इसके इलाज के लिए नियम बनाएगी। यह रिसर्च में मदद के लिए एक ग्लोबल रजिस्ट्री भी बनाएगी और दुनिया भर के स्वास्थ्य कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने के लिए अध्ययन सामग्री तैयार करेगी।


Label

PREMIUM

CONNECT WITH US

X
Login
X

Login

X

Click here to make payment and subscribe
X

Please subscribe to view this section.

X

Please become paid subscriber to read complete news