विदेशी मुद्रा लेनदेन में करीब 33 प्रतिशत की बढ़ोतरी से वित्त वर्ष 2024-25 में भारतीय रिजर्व बैंक के बही-खाते का आकार बढक़र 76.25 लाख करोड़ रुपये हो गया है। इसके दम पर ही केंद्रीय बैंक ने सरकार को 2.7 लाख करोड़ रुपये का बड़ा लाभांश दिया है। आरबीआई ने जारी अपनी 2024-25 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि देश वित्त वर्ष 2025-26 में भी दुनिया की सबसे तेजी से बढऩे वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा। इसमें कहा गया कि दीर्घकालीन भू-राजनीतिक तनाव और भू-आर्थिक विखंडन के बीच, मजबूत वृहद आर्थिक बुनियादी आंकड़ों और सक्रिय नीतिगत उपायों के समर्थन से 2024-25 में अर्थव्यवस्था ने जुझारू क्षमता दिखाई। रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘ वित्तीय क्षेत्र की मजबूती (जो बेहतर परिसंपत्ति गुणवत्ता और अच्छी तरह से पूंजीकृत बैंकों में परिलक्षित होती है) ने आर्थिक गतिविधियों को और अधिक समर्थन दिया। कई वैश्विक चुनौतियों के बीच, भारतीय वित्तीय बाजारों ने जुझारू एवं व्यवस्थित गतिविधियों का प्रदर्शन किया।’’ इसने वैश्विक वित्तीय बाजार में अस्थिरता, भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार विखंडन, आपूर्ति-श्रृंखला में व्यवधान एवं जलवायु संबंधी चुनौतियों के कारण उत्पन्न अनिश्चितताओं को वृद्धि के दृष्टिकोण के लिए नकारात्मक जोखिम और मुद्रास्फीति के दृष्टिकोण के लिए सकारात्मक पहलू के रूप में चिह्नित किया। रिजर्व बैंक ने कहा कि हालांकि, आपूर्ति-श्रृंखला पर दबाव में कमी, वैश्विक जिंस कीमतों में नरमी और सामान्य से बेहतर दक्षिण-पश्चिम मानसून से कृषि उत्पादन में वृद्धि जैसे कारक मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए अच्छे संकेत हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि शुल्क नीतियों में बदलाव के चलते वित्तीय बाजारों में कहीं-कहीं अस्थिरता का प्रभाव दिख सकता है और निर्यात को ‘‘ अंतर्मुखी नीतियों एवं शुल्क युद्ध’’ के कारण प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि भारत के व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर एवं बातचीत करने से इन प्रभावों को सीमित करने में मदद मिलेगी। साथ ही, सेवा निर्यात एवं प्रवासियों द्वारा भेजे जाने वाले धन (रेमिटेंस) से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि वित्त वर्ष (2025-26) में चालू खाते का घाटा (कैड) ‘‘ उल्लेखनीय रूप से प्रबंधन के दायरे में’’ हो। केंद्रीय बैंक ने लगातार दो समीक्षाओं में प्रमुख नीतिगत दर रेपो में कटौती की है। वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया कि अब 12 महीने की अवधि में कुल मुद्रास्फीति के 4' के लक्ष्य के अनुरूप बने रहने को लेकर ‘‘ अधिक भरोसा ’’ है। इसमें सुझाव दिया गया कि ब्याज दर जोखिम की गतिशील प्रकृति को ध्यान में रखते हुए बैंकों को व्यापार और बैंकिंग दोनों प्रकार के बही जोखिमों से निपटने की आवश्यकता है, खासकर शुद्ध ब्याज ‘मार्जिन’ में कमी के मद्देनजर।