अमेरिका में गैर-नागरिकों के विदेश में धन भेजने (रेमिटेंस) पर पांच प्रतिशत का टैक्स लगाने के प्रस्ताव को लेकर भारत में चिंता बढ़ रही है। आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने कहा कि इससे भारतीय परिवारों और रुपये को नुकसान पहुंच सकता है। एक अनुमान के मुताबिक, इस टैक्स की वजह से अमेरिका में रहने वाले भारतीयों पर सालाना 1.6 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का बोझ पड़ सकता है। यह प्रावधान 12 मई को अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में पेश किए गए द वन बिग ब्यूटीफुल बिल नामक व्यापक विधायी पैकेज का हिस्सा है। यह ग्रीन कार्ड और एच1बी वीजा रखने वालों सहित चार करोड़ से अधिक लोगों को प्रभावित करेगा। प्रस्तावित शुल्क अमेरिकी नागरिकों पर लागू नहीं होगा। जीटीआरआई ने कहा, अमेरिका में गैर-नागरिकों के विदेश में धन भेजने पर टैक्स लगाने के प्रस्ताव से भारत में चिंता बढ़ रही है, क्योंकि अगर यह योजना कानून बन जाती है, तो भारत को सालाना विदेशी मुद्रा प्रवाह में अरबों डॉलर का नुकसान होगा। जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, पांच प्रतिशत टैक्स से रेमिटेंस की लागत में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। अगर धन प्रेषण में सालाना 10-15 प्रतिशत की गिरावट हुई तो भारत को 12-18 अरब डॉलर का नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि इस नुकसान से भारत के विदेशी मुद्रा बाजार में अमेरिकी डॉलर की आपूर्ति कम हो जाएगी, जिससे रुपये पर गिरावट का दबाव बनेगा। श्रीवास्तव ने कहा, भारतीय रिजर्व बैंक को मुद्रा को स्थिर करने के लिए अधिक बार हस्तक्षेप करना पड़ सकता है। इस वजह से रुपया 1-1.5 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर तक कमजोर हो सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के मार्च बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, 2023-24 में भारत को अमेरिका से कुल 32.9 अरब डॉलर का रेमिटेंस मिला। इसका पांच प्रतिशत 1.64 अरब डॉलर होगा। आरबीआई के लेख में कहा गया कि धन प्रेषण से मिली राशि का इस्तेमाल मुख्य रूप से परिवार के भरण-पोषण के लिए होता है, इसलिए इसकी लागत बढऩे का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव होता है। इस लागत को कम करना ग्लोबल स्तर पर एक महत्वपूर्ण नीतिगत एजेंडा रहा है।