बीकानेर। प्रोटीन का खजाना दाल आम उपभोक्ता से परे होता नजर आ रहा है। बीते साल संयुक्त राष्ट्र संघ ने दाल के उपभोग को बढ़ावा देने के लिए दाल वर्ष के रूप में मनाया, लेकिन अब केंद्र सरकार द्वारा जीएसटी लगाने से संयुक्त राष्ट्र संघ की मुहिम पर पानी फिरता नजर आ रहा है। दाल से जुड़े कारोबारियों में इस विषय को लेकर जबरदस्त भ्रांति फैली हुई है। कारोबारियों का कहना है कि सरकार द्वारा जीएसटी में दालों को कर मुक्त रखकर आम उपभोक्ता को राहत प्रदान की है, लेकिन ब्रांडेड दालों पर पूर्ण स्पष्टीकरण के अभाव में अब भी उद्योग-व्यापार जगत में भ्रांतियां बनी हुई हंै कि ब्रांडेड दाल कर मुक्त है अथवा नही? दाल प्रोसेसिंग इकाइयां अधिकांशत: कुटीर एवं लघु उद्योग श्रेणी की है। विगत कुछ वर्षों से देश में एफएसएसआई लागू होने के बाद अधिकांश लघु उद्यमी अपने उत्पाद की गुणवत्ता की साख बाजार में स्थापित करने के लिए ब्रांड में पैकिंग कर विक्रय कर रहे हंै ताकि लघु उद्यमी बहुराष्ट्रीय कंपनियों एवं बड़े उद्योगों के सामने अपने उत्पाद की गुणवत्ता के कारण बाजार में अपने उत्पाद का बेच सके। कारोबारियों का मानाना है कि दालें चाहे ब्रांडेड हो अथवा अन-ब्रांडेड, (सभी के भेद को मिटाकर) आम उपभोक्ता की आवश्यक वस्तु समझते हुए सभी प्रकार की दालों को कर मुक्त किया जाए। साथ ही कृषि मंडी शुल्क को भी जीएसटी के दायरे में रखते हुए इसके अलग से प्रावधान को समाप्त किया जाए। हाल ही में इस मुद्दे को लेकर बीकानेर दाल मिल्स एसोसिएसन के सचिव राजकुमार पचीसिया, जयकिशन अग्रवाल, अशोक गहलोत ने केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को ज्ञापन देकर ब्रांडेड दालों पर जीएसटी के संबंध में उत्पन्न भ्रांतियों को दूर करने की मांग की थी। अब यह सरकार पर निर्भर है कि वे दाल पर कारोबारियों को अपना स्पष्टीकरण देती है या जीएसटी लगाकर आमजन को इस महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ से दूरी रखती है।
-निजी संवाददाता