सरकार ने बैंकिंग कानून (संशोधन) अधिनियम, 2025 में संशोधनों को अधिसूचित कर दिया है। यह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बिना दावे वाले शेयर, ब्याज और बॉन्ड राशि को निवेशक शिक्षा एवं संरक्षण कोष (IEPF) में स्थानांतरित करने की अनुमति देता है। इसके साथ, वे कंपनी कानून के तहत काम करने वाली कंपनियों की श्रेणी में आ गए हैं। वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि ये संशोधन सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को वैधानिक लेखा परीक्षकों को पारिश्रमिक प्रदान करने, उच्च-गुणवत्ता वाले लेखा परीक्षा पेशेवरों की नियुक्ति को सुगम बनाने और लेखा परीक्षा मानकों को बेहतर बनाने का अधिकार भी देते हैं। इसके अलावा, राजपत्र में प्रकाशित 29 जुलाई, 2025 की अधिसूचना ने ‘किसी कंपनी में पर्याप्त हित’ की सीमा को भी पांच लाख रुपये से बढ़ाकर दो करोड़ रुपये कर दिया है। ‘किसी कंपनी में पर्याप्त हित’ की सीमा में 1968 के बाद संशोधन किया गया है।बैंकिंग कानून अधिनियम के तहत, किसी कंपनी में पर्याप्त हित का अर्थ पांच लाख रुपये से अधिक के शेयर या कंपनी की चुकता पूंजी का 10 प्रतिशत हिस्सेदारी धारण करने से है। इसके अतिरिक्त, अधिसूचना के अनुसार, सहकारी बैंकों में चेयरपर्सन और पूर्णकालिक निदेशक को छोडक़र अधिकतम कार्यकाल आठ साल से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दिया गया है। यह व्यवस्था सहकारी बैंकों में निदेशक के कार्यकाल को 97वें संविधान संशोधन के अनुरूप बनाती है। इन प्रावधानों का क्रियान्वयन भारतीय बैंक क्षेत्र के कानूनी, नियामकीय और संचालन ढांचे को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। बैंकिंग कानून (संशोधन) अधिनियम, 2025 को 15 अप्रैल, 2025 को अधिसूचित किया गया था। इसमें पांच कानूनों... भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934, बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949, भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 और बैंकिंग कंपनियां (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970 और 1980... में कुल 19 संशोधन शामिल हैं। बैंकिंग कानून (संशोधन) अधिनियम, 2025 का उद्देश्य बैंक क्षेत्र में संचालन मानकों में सुधार करना, जमाकर्ताओं और निवेशकों के लिए बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित करना, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में लेखा परीक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना और सहकारी बैंकों में निदेशकों (चेयरपर्सन और पूर्णकालिक निदेशकों के अलावा) का कार्यकाल बढ़ाना है।