उच्चतम न्यायालय ने मादक पदार्थों के मामले में एक महिला को दी गई सजा में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि विधायिका द्वारा निर्धारित वैधानिक न्यूनतम सजा को मानवीय आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने मद्रास उच्च न्यायालय के जून 2024 के उस आदेश को चुनौती देने वाली महिला की अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम, 1985 के प्रावधानों के तहत दर्ज मामले में उसकी दोषसिद्धि और 10 वर्ष की सजा को बरकरार रखा गया था। न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति विपुल एम पंचोली की पीठ ने अपील खारिज करते हुए कहा कि अपीलकर्ता, जो 2019 में घटना के समय 24 वर्ष की थी, ने न्यायालय से अपनी उम्र, आपराधिक इतिहास न होने और अपने नाबालिग बच्चे के प्रति जिम्मेदारी का हवाला देते हुए सजा पर विचार करने का आग्रह किया है। पीठ ने कहा कि यद्यपि वह अपीलकर्ता की परिस्थितियों को नजरअंदाज नहीं कर रही है, फिर भी एनडीपीएस अधिनियम में निश्चित मात्रा में मादक पदार्थों जब्त होने के लिए न्यूनतम अनिवार्य सजा का प्रावधान है। पीठ ने कहा, ‘‘एनडीपीएस अधिनियम की धारा 20(ख)(2)(सी) के तहत न्यायालय के पास वैधानिक न्यूनतम सजा से कम सजा देने का कोई अधिकार नहीं है। विधायिका द्वारा निर्धारित वैधानिक न्यूनतम सजा को मानवीय आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता।’’