भारत और ईयू के बीच इन दिनों एफटीए की बातचीत चल रही है। जिसमें यूरोप की कारों पर इंपोर्ट ड्यूटी घटाना भी एजेंडा में शामिल है। लेकिन रेनो, फोक्सवैगन, फिएट-जीप (एफसीए), स्कोडा और सित्रोइन जैसे दिग्गज यूरोपीय कार ब्रांड्स की इंडिया स्टोरी बहुत ट्रेजिक है। चेक रिपब्लिक की कंपनी स्कोडा की भारत में सिल्वर जुबिली (इंडिया एंट्री वर्ष 2000) पूरी हो चुकी है वहीं फोक्सवैगन अडल्ट हो चुकी है। फोक्सवैगन ने भारत में साल 2007 में कदम रखे थे। इन सालों में फोक्सवैगन ग्रुप के ये दोनों ब्रांड्स बार-बार ड्रॉइंग बोर्ड पर गए है। कई बार प्रॉडक्ट और ब्रांड पोजिशनिंग बदल चुके हैं लेकिन डेस्टिनी नहीं बदल पाए। बात सिर्फ यूरोपीय कार ब्रांड्स की ही नहीं। इस मामले में ये अमेरिकी कार ब्रांड्स के साथ जैसे मुकाबले में हैं। अमेरिका के फोर्ड और जीएम इनसे भी पहले 1994-1995 में भारत आए थे। वो कहते हैं ना गिविंग रन फोर देयर मनी...इंडियन और एशियन ब्रांड्स ने यूरोपीय और अमेरिकन ब्रांड्स के साथ यही किया है। हालांकि जापानी निसान और इसुजु मार्केट में एक्टिव हैं। होंडा की शुरुआत बहुत अच्छी रही थी और इसमें प्राइस प्रीमियम का भी खूब फायदा उठाया था लेकिन साल 2010 के आस-पास जैसे डीजल का दबदबा बढ़ता गया होंडा पिछड़ती ही चली गई और अब फ्रिंज प्लेयर ही रह गई है। लेकिन जापानी की ही टोयोटा व सुजुकी और कोरियाई ह्यूंदे (पावरब्रांड) बनने में कामयाब रही हैं। ऑटो कन्सल्टेंट जाटो डायनामिक्स का डेटा कहता है कि फ्रांस की रेनो की इंडिया सेल्स वित्त वर्ष 25 में केवल 38636 यूनिट्स रह गई। वित्त वर्ष24 में रेनो ने भारत में 46614 गाडिय़ां बेची थीं और वित्त वर्ष 22 में 84012 यूनिट्स। यानी तीन साल में ही रेनो की सेल्स भारत में करीब आधी रह गई है। फोक्सवैगन की स्कोडा भारत को अपना ग्लोबल बेस बनाना चाहती है और लगातार नए प्रॉडक्ट लाने पर इंवेस्ट कर रही है लेकिन वित्त वर्ष 25 में 44,866 यूनिट्स ही बेच पाई। वित्त वर्ष 23 में चेक रिपब्लिक की इस कंपनी ने 52,269 गाडिय़ां बेची थीं। वहीं फोक्सवैगन ने वित्त वर्ष 25 में 42,230 और वित्त वर्ष 24 में 43,197 यूनिट्स बेचीं। फोक्सवैगन और स्कोडा की कुल सेल्स वित्त वर्ष 21 में केवल 22359 यूनिट्स थी जो वित्त वर्ष 24 में 88412 यूनिट्स तक पहुंच गई और पिछले वित्त वर्ष में दोनों ब्रांड्स की कुल सेल्स 80412 यूनिट्स थी। जीप और सित्रोइन के लिए तो हालात बहुत ही क्रिटिकल हैं। इन चारों यूरोपीय ब्रांड्स में से एक भी ऐसा नहीं है जो 40 लाख यूनिट्स के मार्केट में 1 लाख यूनिट्स का सेल्स लेवल भी हासिल कर पा रहा हो। हालांकि स्कोडा लगातार अपने पोर्टफोलियो का विस्तार कर रही है और काइलेक से लेकर कोडियाक तक चार मॉडलों की कंपनी ने स्ट्रेटेजिक पोजिशनिंग की है। जाटो डायनामिक्स इंडिया के प्रेसिडेंट रवि भाटिया कहते हैं रेनो, स्कोडा और फोक्सवैगन के लिए भारत का मार्केट बहुत चैलेंजिंग बना रहा है। शुरू में इन ब्रांड्स ने वेंतो, रेपिड और स्काला जैसे सेडान मॉडल्स पर ज्यादा ध्यान दिया। हालांकि कॉम्पेक्ट एसयूवी डस्टर के रूप में जैकपॉट हाथ लगा थी लेकिन कंपनी ब्रांड के लिए जबरदस्त कस्टमर ट्रेक्शन को कैपिटलाइज करने में चूक गई। पिछले सालों में भारत का कार मार्केट बहुत बदल चुका है और कॉम्पेक्ट और मिड एसयूवी नए सेंटर ऑफ ग्रेविटी बन गए हैं। आज एसयूवी का भारत के पीवी मार्केट में 54 परसेंट शेयर है। एनेलिस्ट कहते हैं कि जिन ब्रांड्स ने मार्केट एप्रोच के बजाय होम अप्रोच को पकड़े रखा वे भारत में टिक नहीं पाए। यूरोपीय, अमेरिकन और जापानी कंपनियों ने अपने ग्लोबल प्रॉडक्ट्स को भारत में लॉन्च किया। और कई मॉडल तो ऐसे थे जिनका होमोलोगेशन (लेफ्ट साइड इंडिकेटर) भी नहीं ठीक से नहीं हुआ था। नतीजा महिन्द्रा, टाटा, मारुति और ह्यूंदे के लॉयल कस्टमर बेस में सेंध नहीं लगा पाए।
