कोविड में चीन में लंबा लॉकडाउन लगा ग्लोबल सप्लाई चेन को डिसरप्ट दिया था। नतीजा एपल ने मैन्युफैक्चरिंग को डीरिस्क करने के लिए भारत को ग्लोबल बेस बना लिया। ताईवान से सेमीकंडक्टर (चिप) रुकी ऑटो और गैजेट्स इंडस्ट्री का रिकवरी का फायदा उठाने में चूक गईं। नतीजा भारत, अमेरिका, मलेशिया सहित कई देश सेमीकंडक्टर की सप्लाई पर बड़ा इंवेस्टमेंट कर रहे हैं। हाल ही ईरान ने जिस तरह गल्फ ऑफ होर्मुज को ब्लॉक कर ग्लोबल ऑइल शिपिंग रूट को काटा उससे भी सप्लाई को डाइवर्सिफाई करने की कोशिशें तेज हो रही हैं। टैरिफ वॉर और एआई तो ग्लोबल ऑर्डर पर और भी ज्यादा असर डाल रहे हैं। इंफोसिस के चेयरमैन नंदन नीलेकणी कहते हैं कि एआई और एनर्जी ट्रांजिशन (ग्रीन की ओर शिफ्ट) से भी ग्लोबल ऑर्डर में अनिश्चितता बढ़ रही है। नीलेकणी ने कहा ...perfect storm of multiple colliding factors (बहुत से फैक्टरों में एक साथ भिडंत होने से तूफान खड़ा हो चुका है)...है। सिंगल ग्लोबल मार्केट को छोड़ दुनिया छोटे-छोटे ब्लॉक्स में बंट रही है। नतीजा कंपनियों को स्ट्रेटेजिक चुनाव के साथ ही अलग-अलग क्षेत्रों में रास्ते बनाने पड़ रहे हैं। नीलेकणी ने कहा कि 90 के दशक वाला वन लार्ज सिंगल ग्लोबल मार्केट पीछे छूट चुका है और बाइलेटरल और रीजनल ट्रेड एग्रीमेंट बड़ी फोर्स बन रहे हैं। इसलिए सप्लाई चेन को डाइवर्सिफाई करने की और भी ज्यादा जरूरत है। वे कहते हैं रेगुलेटरी सिस्टम में अंतर होने से एआई को लागू करना बहुत जटिल है। लेकिन डेटा के कंज्यूमेबल (उपभोक्ता उत्पाद) बन जाने के कारण एआई का इस्तेमाल भी जरूरी हो गया है। नीलेकणी के अनुसार...Companies need both AI foundries (लोहे को तपाकर शेप देने वाली वर्कशॉप) for Innovation and AI factories for Scaling...(इनोवेशन के लिए एआई फाउंड्री और स्केलिंग के लिए एआई फैक्ट्री) दोनों की जरुरत होगी। एनर्जी ट्रांजिशन की बात करते हुए वे कहते हैं इससे अनिश्चितता बढ़ रही है क्योंकि सोलर, विंड बैटरी, हाइड्रोजन और न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी में इनोवेशन के कारण बिजली की भूमिका बहुत बड़ी हो जाएगी। देशों को ट्रांसमिशन लाइन, चार्जिंग स्टेशन और ट्रांसफॉर्मर आदि पर बहुत बड़ा इंवेस्टमेंट करना पड़ेगा। वे कहते हैं कि ऑटो, फार्मा, लॉजिस्टिक्स, मैन्युफैक्चरिंग और फाइनेंशियल सर्विस तक सभी बिजनस सैक्टर के सामने फंडामेंटल चैलेंज आ खड़े हुए हैं।