चिरौंजी का उत्पादन अधिक होने तथा पुराना स्टॉक ज्यादा बचने से सकल उपलब्धि उत्पादक एवं वितरक मंडियों में भारी मात्रा में जमा हो गया है। दूसरी ओर खपत वाले उद्योगों की मांग अनुकूल नहीं है, जिससे बाजार धीरे-धीरे मंदे की तरफ बना हुआ है तथा आगे चलकर अभी और बाजार दबा रहेगा, जबकि निकट में तेजी का व्यापार अभी ढाई-तीन महीने नहीं करना चाहिए। चिरौंजी का उत्पादन 23-24 प्रतिशत इस बार भी अधिक हुआ है तथा गत वर्ष का 26 प्रतिशत माल बचा हुआ है। यही कारण है कि उत्पादक मंडियों में 1700/1800 रुपए प्रति किलो चिरौंजी बिकने के बाद वर्तमान में घटकर 1500/1600 रुपए प्रति किलो रह गयी है। गौरतलब है कि अमरवाड़ा लाइन में अभी 73 प्रतिशत गुठली स्टाकिस्टों के गले में फंस गई है। उत्पादकों एवं कच्ची मंडियों के निकासी करने वाले कारोबारी ऊंचे भाव में अपना गुठली बेच गए हैं, वह सारा माल प्रोसेसिंग यूनिटों में आकर फंस गया है। इसके अलावा बैतूल गंज कालाहांडी ओबरा लाइन का माल पूर्वी यूपी बिहार झारखंड में खप रहा है, बंगाल में भी छोटे दाने के माल खप रहे हैं, क्योंकि वहां जाकर 1550 रुपए पहुंचने पड़ रहा है। यहां से जो माल पश्चिमी यूपी हरियाणा पंजाब गुजरात महाराष्ट्र जाता था, वह भी माल नहीं जा रहा है, क्योंकि उत्पादक मंडियों से ही भाड़े की वजह से माल पहले ही जा चुका है। सीजन में ही स्टाकिस्ट चौतरफा लिवाली में आ गए थे, जिससे गुठली के भाव ऊंचे हो गए थे। यही कारण है कि जो चिरौंजी अमरवाड़ा लाइन में 1600/1700 रुपए बिकी थी, उसके भाव 1400/1450 रुपए रह गए हैं तथा अब धारणा वहां 1200/1250 रुपए प्रति किलो की बन गई है। कानपुर लखनऊ मंडी मंदी चल रही है, इधर इंदौर लाइन में भी कोई लिवाल नहीं हैं, अमृतसर लुधियाना में पुराना माल ही फंसा हुआ है। यही कारण है कि दिल्ली में 1500/1600 रुपए प्रति किलो पर चालू माह के अंतराल 100/150 रुपए की गिरावट आ गई है तथा अब दूर-दूर तक ग्राहकी का सन्नाटा बना हुआ है। व्यापारी वर्ग का कहना है कि पिछले तीन दिन से स्थिति यह बन गई है कि कोई चिरौंजी का भाव भी नहीं पूछ रहा है, इन परिस्थितियों को देखते हुए अभी ढाई तीन महीने में 100 रुपए की और गिरावट ही आ सकती है तथा दिवाली से पहले कुछ भी बढने की संभावना नहीं है। हमारे विचार से चिरौंजी में एक बार दिसंबर के दूसरे पखवाड़े से कुछ मांग सुधर सकती है, क्योंकि अभी ऊंचे भाव के लिए गए स्टॉकिस्टों एवं खपत वाले उद्योगों के माल कटने में कम से कम साढ़े तीन-चार महीने का समय लगेगा।