मसूर की आपूर्ति उत्पादक मंडियों में काफी घट जाने से वहां बाजार बढ़ गए हैं। इधर कनाडा में हाल ही में 20-25 डॉलर प्रति टन की तेजी आ जाने से उसके पड़ते भी महंगे हो गए हैं, इन परिस्थितियों को देखते हुए मसूर देशी बिल्टी में 7500 रुपए बनने की धारणा आने लगी है। मसूर का घरेलू उत्पादन अधिक होने के बावजूद भी पाइपलाइन में पुराना माल नहीं होने से, चालू वर्ष का माल धीरे-धीरे शॉर्टेज में आने लगा है। दूसरी ओर मुंदड़ा पोर्ट पर कनाडा की मसूर 150/175 रुपए प्रति कुंतल बढ़ाकर बोलने लगे हैं। मसूर की बिजाई भी कनाडा में इस बार कम होने की खबरें आ रही हैं। दूसरी ओर पुराना स्टाक वहां भी कम बचने से वहां के निर्यातक घटाकर बिकवाल नहीं आ रहे हैं। इधर मुंगावली, गंज बासौदा, सागर, बीनागंज, अशोकनगर, भोपाल आदि उत्पादक क्षेत्रों में गत वर्ष की समान अवधि की तुलना में 33-34 प्रतिशत का स्टॉक कम बताया जा रहा है। यही कारण है कि मंडियों में माल का प्रेशर नहीं है, किसानी माल की आवक पिछले एक पखवाड़े से लगातार टूटती जा रही है। यही कारण है कि दिल्ली सहित उत्तर भारत की दाल मिलों में माल कम आ रहा है, पिछले सप्ताह के शुरुआत में जो नीचे में बिल्टी में मसूर 6600 रुपए बिकी थी, उसके भाव 6800 हो गए हैं। कनाडा की मसूर भी यहां 6150 से बढक़र 6300 हो गई है। मलका एवं छांटी की मांग रैक वालों की निकलने लगी है। गौरतलब है कि एक रैक लोडिंग में है तथा इस महीने के दूसरे पखवाड़े में गुवाहाटी एवं नेपाल के लिए और रैक जाने के समाचार आ रहे हैं। दूसरी ओर घरेलू फसल फरवरी-मार्च में आएगी, उससे पहले कनाडा की मसूर सितंबर-अक्टूबर में आएगी, लेकिन इसकी बिजाई भी कम होने की बात आयातक बोल रहे हैं, इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए जो बिल्टी में मसूर 6800 रुपए बिक रही है, वह चालू माह के अंतराल 7000 रुपए तथा आगे चलकर 7500 रुपए प्रति क्विंटल बन सकती है। इस बार मसूर के व्यापार में कोई रिस्क नहीं है तथा धैर्य से व्यापार करते रहना चाहिए। मसूर का उत्पादन इस बार 17-18 लाख मैट्रिक टन के बीच हुआ था, जबकि हमारी खपत 28 लाख मीट्रिक टन की है, शेष खपत हेतु आवश्यकता कनाडा ऑस्ट्रेलिया की मसूर से पूर्ति होती है। वहीं इस बार विदेशी माल ऊंचे पड़ते के मिल रहे हैं तथा उसमें कश कम बैठ रहा है, इन सारी परिस्थितियों में इस बार जड़ में मंदा नहीं है।