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17-05-2025

सबसे बड़ा हथियार बन गया है ‘कारोबार’!

  •  पिछले दिनों भारत और पाकिस्तान जिस युद्ध को टालने में सफल रहे उसके पीछे की कहानी के वैसे तो कई पहलू है पर सबसे बड़ा कारण शायद कारोबार या ट्रेड कहा जा सकता है जिसकी पॉवर के आगे दोनों देश जोश दिखाने के बाद नरम पडऩे को तैयार हो गए। भारत द्वारा सीजफायर को स्वीकार कर युद्ध के रास्ते पर आगे न बढऩे के फैसले को लोग इसलिए सही नहीं मान रहे हैं क्योंकि उनका जोश उनपर हावी है जिसमें बदला लेने की भावना होने के साथ-साथ आतंकवाद की समस्या को हमेशा के लिए खत्म करने की इच्छा है जो सही भी है लेकिन जोश ठंडा होने के बाद जब होश संभाला जाता है तो क्या स्थितियां बनती है इसका अंदाजा पहले लगाया जाना भी उतना ही जरूरी है। अमेरिका के राष्ट्रपति ने जब सीजफायर के लिए भारत व पाकिस्तान को तैयार करने की घोषणा की तो उन्होंने कहा कि हम दोनों देशों के साथ बहुत ट्रेड/कारोबार करेंगे पर अगर युद्ध हुआ तो दोनों देशों के साथ कोई ट्रेड नहीं किया जाएगा। राष्ट्रपति ट्रम्प ने ट्रेड को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जिसके आगे भारत व पाकिस्तान को झुकना ही पड़ा। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि जो देश युद्ध के माहौल से घिरा हो, जहां अशांति हो व जहां असुरक्षा का अहसास हो वहां कारोबार के डवलपमेंट व ग्रोथ पर सीधा असर होने लगता है और शायद यही कारण है कि भारत और पाकिस्तान देानों ही कारोबार व ट्रेड के मामले में इतनी बड़ी रिस्क न लेने के लिए तैयार हो गए। कारोबार/ट्रेड के लिहाज से अमेरिका को चीन को कंट्रोल में रखने के लिए भारत की जरूरत है यह सभी जानते हैं यानि भारत जितना सुरक्षित देश बनता जाएगा उतना ही चीन के खिलाफ खड़ा होने में अमेरिका मजबूत होता जाएगा। यह कर पाने के लिए भारत को पाकिस्तान और आतंकवाद के सिरदर्द से छुटकारा दिलाना भी अब अमेरिका के लिए जरूरी होने लगा है जो भारत के लिए अच्छा संकेत माना जा रहा है।

    बहस इस बात पर भी चल रही है कि सीजफायर अमेरिका के दबाव में नहीं हुआ बल्कि पाकिस्तान ने घबराकर सीजफायर के लिए भारत से बात करने की पहल की थी। कारण कुछ भी रहा हो पर यह कहना गलत नहीं होगा कि ट्रेड व कारोबार की संभावित चुनौतियों ने सीजफायर के लिए सबसे अहम रोल निभाया है। वैसे भी हमारे देश की पहचान आजकल कंजम्पशन व प्रोडक्शन के मामलों में चीन के विकल्प/ऑप्शन के रूप में होने लगी है भले ही हमारी स्थिति उस लेवल के आस-पास की भी न हो लेकिन दुनिया में ऐसी सोच कई देश रखते हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प का टैरिफ लगाने का आइडिया भी सीधा ट्रेड/कारोबार से ही जुड़ा हुआ है जिसके लागू होते ही दुनियाभर के बाजारों में भूचाल आ गया क्योंकि टैरिफ का असर सभी अपने-अपने देशों व वहां के कारोबारों पर आने से पहले ही महसूस करने लगे थे। राष्ट्रपति ट्रम्प ने सीजफायर को स्वीकार करने के लिए भारत व पाकिस्तान को बधाई देते हुए कहा कि दोनों देशों ने Common Sense का उपयोग करते हुए Great Intelligence का परिचय दिया है। कारगिल युद्ध के दौरान जब अमेरिका के राष्ट्रपति ने भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को कहा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री वाशिंगटन आ गए है, आप भी आ जाइए ताकि मिलकर बातचीत की जा सके तो प्रधानमंत्री वाजपेयी ने जाने से मना कर दिया था और कहा कि जब तक पाकिस्तानी सेना हमारी जमीन नहीं छोड़ेगी तब तक कोई बात नहीं होगी। उस समय अमेरिका कोई डील करवाने में क्यों कामयाब नहीं हुआ इसका भी महत्व है क्योंकि इसबार जितनी जल्दी सीजफायर की डील हुई है वह कई अनकही बातों की ओर इशारा कर रही है। मिलिट्री पॉवर और कारोबारी पॉवर में से किसका पलड़ा आजकल भारी है यह अलग से चर्चा का विषय है लेकिन कारोबारों की बढ़ती पॉवर भी हर चैलेंज व मुश्किल को मैनेज कर सकती है जिसकी झलक हम भारत व पाकिस्तान के बीच हुई सीजफायर की डील में देख सकते हैं।

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सबसे बड़ा हथियार बन गया है ‘कारोबार’!

 पिछले दिनों भारत और पाकिस्तान जिस युद्ध को टालने में सफल रहे उसके पीछे की कहानी के वैसे तो कई पहलू है पर सबसे बड़ा कारण शायद कारोबार या ट्रेड कहा जा सकता है जिसकी पॉवर के आगे दोनों देश जोश दिखाने के बाद नरम पडऩे को तैयार हो गए। भारत द्वारा सीजफायर को स्वीकार कर युद्ध के रास्ते पर आगे न बढऩे के फैसले को लोग इसलिए सही नहीं मान रहे हैं क्योंकि उनका जोश उनपर हावी है जिसमें बदला लेने की भावना होने के साथ-साथ आतंकवाद की समस्या को हमेशा के लिए खत्म करने की इच्छा है जो सही भी है लेकिन जोश ठंडा होने के बाद जब होश संभाला जाता है तो क्या स्थितियां बनती है इसका अंदाजा पहले लगाया जाना भी उतना ही जरूरी है। अमेरिका के राष्ट्रपति ने जब सीजफायर के लिए भारत व पाकिस्तान को तैयार करने की घोषणा की तो उन्होंने कहा कि हम दोनों देशों के साथ बहुत ट्रेड/कारोबार करेंगे पर अगर युद्ध हुआ तो दोनों देशों के साथ कोई ट्रेड नहीं किया जाएगा। राष्ट्रपति ट्रम्प ने ट्रेड को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जिसके आगे भारत व पाकिस्तान को झुकना ही पड़ा। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि जो देश युद्ध के माहौल से घिरा हो, जहां अशांति हो व जहां असुरक्षा का अहसास हो वहां कारोबार के डवलपमेंट व ग्रोथ पर सीधा असर होने लगता है और शायद यही कारण है कि भारत और पाकिस्तान देानों ही कारोबार व ट्रेड के मामले में इतनी बड़ी रिस्क न लेने के लिए तैयार हो गए। कारोबार/ट्रेड के लिहाज से अमेरिका को चीन को कंट्रोल में रखने के लिए भारत की जरूरत है यह सभी जानते हैं यानि भारत जितना सुरक्षित देश बनता जाएगा उतना ही चीन के खिलाफ खड़ा होने में अमेरिका मजबूत होता जाएगा। यह कर पाने के लिए भारत को पाकिस्तान और आतंकवाद के सिरदर्द से छुटकारा दिलाना भी अब अमेरिका के लिए जरूरी होने लगा है जो भारत के लिए अच्छा संकेत माना जा रहा है।

बहस इस बात पर भी चल रही है कि सीजफायर अमेरिका के दबाव में नहीं हुआ बल्कि पाकिस्तान ने घबराकर सीजफायर के लिए भारत से बात करने की पहल की थी। कारण कुछ भी रहा हो पर यह कहना गलत नहीं होगा कि ट्रेड व कारोबार की संभावित चुनौतियों ने सीजफायर के लिए सबसे अहम रोल निभाया है। वैसे भी हमारे देश की पहचान आजकल कंजम्पशन व प्रोडक्शन के मामलों में चीन के विकल्प/ऑप्शन के रूप में होने लगी है भले ही हमारी स्थिति उस लेवल के आस-पास की भी न हो लेकिन दुनिया में ऐसी सोच कई देश रखते हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प का टैरिफ लगाने का आइडिया भी सीधा ट्रेड/कारोबार से ही जुड़ा हुआ है जिसके लागू होते ही दुनियाभर के बाजारों में भूचाल आ गया क्योंकि टैरिफ का असर सभी अपने-अपने देशों व वहां के कारोबारों पर आने से पहले ही महसूस करने लगे थे। राष्ट्रपति ट्रम्प ने सीजफायर को स्वीकार करने के लिए भारत व पाकिस्तान को बधाई देते हुए कहा कि दोनों देशों ने Common Sense का उपयोग करते हुए Great Intelligence का परिचय दिया है। कारगिल युद्ध के दौरान जब अमेरिका के राष्ट्रपति ने भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को कहा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री वाशिंगटन आ गए है, आप भी आ जाइए ताकि मिलकर बातचीत की जा सके तो प्रधानमंत्री वाजपेयी ने जाने से मना कर दिया था और कहा कि जब तक पाकिस्तानी सेना हमारी जमीन नहीं छोड़ेगी तब तक कोई बात नहीं होगी। उस समय अमेरिका कोई डील करवाने में क्यों कामयाब नहीं हुआ इसका भी महत्व है क्योंकि इसबार जितनी जल्दी सीजफायर की डील हुई है वह कई अनकही बातों की ओर इशारा कर रही है। मिलिट्री पॉवर और कारोबारी पॉवर में से किसका पलड़ा आजकल भारी है यह अलग से चर्चा का विषय है लेकिन कारोबारों की बढ़ती पॉवर भी हर चैलेंज व मुश्किल को मैनेज कर सकती है जिसकी झलक हम भारत व पाकिस्तान के बीच हुई सीजफायर की डील में देख सकते हैं।


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