आजकल हम डेटा के ऐसे दौर में जीने लगे हैं जहां बाजारों, कारोबारों, सरकारों व लोगों की स्थिति का पता तरह-तरह के डेटा से लगाया जा सकता है। यूं तो सरकारी डेटा को सबसे भरोसेमंद माना जाता है पर जिन बदलते ट्रेंड्स को सरकार टे्रेक नहीं करती उनमें आया बदलावों का डेटा भी अब निर्णय लेने का आधार बनने लगा है। ग्लोबल लेवल पर होने वाली घटनाओं का प्रभाव समझने के लिए डेटा ही सबसे महत्वपूर्ण बन रहा है व इंसान की इंटेलिजेंस की परीक्षा भी कौन डेटा को कैसे देखता है व उसका क्या अर्थ निकालता है, इसी से होने लगी है। पिछले कुछ सालों के बदलते कारोबारी व राजनैतिक माहौल का बारिकी से स्टडी करने पर साफ पता चलता है कि डेटा की वैरायटी कितनी बढ़ गई है। डेटा का बढ़ता जेनरेशन व उसकी उपलब्धता भी यह संदेश देती है कि लोग अपने निर्णयों के लिए सिर्फ सरकारी डेटा पर ही निर्भर नहीं रहना चाहते बल्कि तरह-तरह के डेटा के उपयोग से अपने निर्णय को सही बनाना चाहते हैं। अगर हमारे पास यह डेटा उपलब्ध हो कि पिछले 5 सालों में किसी शहर के कितने जिम व ब्यूटी पार्लर लोगों से मेम्बरशिप फीस लेने के बावजूद अपनी दुकान समेटकर गायब हो गए तो पता लगाया जा सकता है कि पर्सनल हैल्थ व ब्यूटी से जुड़े कारोबार कैसा प्रदर्शन कर रहे हैं। इसी तरह एंटरटेनमेंट यानि बालीवुड व फिल्मों से जुड़े कारोबार की स्थिति बॉक्स ऑफिस कलेक्शन व थिएटरों की सेल्स से पता चलती है जो वैसे भी अच्छी नहीं दिख रही पर डेटा इस ट्रेंड को कंफर्म कर सकता है।
चीन में पिछले कुछ समय से इकोनोमी के डेटा पर कई इकोनोमिस्ट सवाल उठाने लगे हैं जिसके चलते इकोनोमी की सही स्थिति का पता लगाने के लिए ऐसे डेटा व ट्रेंड्स को ट्रेक किया जा रहा है जो पहले कभी नहीं देखा गया। उदाहरण के लिए वहां रात के समय जलने वाली लाइटों को सैटेलाइट से ट्रेक किया जा रहा है यानि अगर रोशनी ज्यादा है व देर तक रहती है तो माना जा सकता है कि बाजार देर तक खुले रहते हैं व वहां लोग आ रहे है और अगर ऐसा नहीं है तो स्थिति विपरीत मानी जाती है। इसी तरह कंस्ट्रक्शन गतिविधियों की सही जानकारी हासिल करने के लिए सीमेंट फैक्ट्रियां कितनी चलती है यह देखा जा रहा है। पॉवर कंपनियों द्वारा बनाई जा रही बिजली से पता लगाया जा रहा है कि पॉवर के कंजम्पशन का लेवल कैसा है। एक ओर कारोबारों की स्थिति जानने के लिए लोगों की लोकेशन के डेटा की स्टडी की जा रही है तो साथ ही सामान ले जाने वाले ट्रांसपोर्ट के डेटा व बैंकों द्वारा दिए जा रहे नए लोन के डेटा को भी ट्रेक किया जा रहा है। एक इकोनोमिस्ट के अनुसार इंसान द्वारा बनाए गए त्रष्ठक्क के डेटा पर आज के दौर में भरोसा करना मुश्किल हो गया है क्योंकि इसकी तुलना दूसरे डेटा या गतिविधियों से करने पर अलग ही तस्वीर सामने आने लगी है। आमतौर पर फॉरेन इंवेस्टमेंट का डेटा, जमीनों की खरीद-बेच का डेटा, ट्यूरिस्ट का डेटा, एक्सपोर्ट-इंपोर्ट का डेटा, महंगाई का डेटा, कारों की सेल्स का डेटा, खेती का डेटा, बारिश का डेटा, शेयर बाजारों व कमोडिटी बाजारों का डेटा, डिमांड सप्लाई का डेटा जैसे ढेरों डेटा सरकार या रेगुलेटर उपलब्ध कराते हैं पर इनपर लोग आंख बंद करके भरोसा करते हुए अपने निर्णय लेने की बजाए अन्य तरह के डेटा की खोज करने लगे हैं व उनपर भरोसा भी करने लगे हैं। डेटा की बढ़ती वैरायटी एक ओर जहां ष्टशठ्ठद्घह्वह्यद्बशठ्ठ को बढ़ा रही है वहीं कई मामलों में बिल्कुल ही अलग स्थिति सामने रख देती है लेकिन हर तरह की वैरायटी के जमाने में डेटा की वैरायटी में भी क्या काम लायक और क्या नहीं इसपर ध्यान देने के साथ-साथ ष्टशद्वद्वशठ्ठ स्द्गठ्ठह्यद्ग का उपयोग भी कई बार डेटा को पॉवरफुल बना देता है जिसके दम पर लिए गए निर्णय भी सही साबित होते हुए देखे जा सकते हैं।