देश में जेनरेशन जैड कस्टमाइजेशन ट्रेंड को बढ़ावा दे रहे हैं। डायरेक्ट-टू-कन्ज्यूमर स्पेस में कस्टमाइजेशन नया बजवर्ड है। स्टार्टअप्स के लिये यह ग्रोथ का नया ड्राइवर बन रहा है। ऑनलाइन फस्र्ट ब्राण्ड्स जैसे कि ट्राया, रावेल, बॉम्बे शर्ट कम्पनी, क्लाउडटेलर, मेक योअर ओन परफ्यूम, फ्लो, द पेंट प्रोजेक्ट, के-केआईएक्स और वूमैनलाइकयू कस्टमर्स की स्पेसिफिक जरूरत को पूरा करने का प्रयास कर रहे हैं। साधारण रूप में समझें तो डी2सी ब्राण्ड्स कस्टमर के हेयर, स्किन टाइप को समझते हैं और फिर मिनटों में प्रोडक्ट सजेस्ट करते हैं। फिर प्रोडक्ट एपू्रव होने पर दो से दस दिन में डिलीवर कर दिया जाता है। कस्टमाइजेशन अब गिफ्टिंग या ओकेजनल जरूरत को पूरा करने तक सीमित नहीं रह गया है। बल्कि अब कन्ज्यूमर्स वन साइज फिट फॉल ऑल सोच से बाहर आ रहे हैं और पर्सनेलाइज्ड प्रोडक्ट्स की डिमांड कर रहे हैं। हेयर केयर, एपेरल्स, फर्नीचर, फर्निशिंग, कॉस्मेटिक्स, फुटवियर और ज्वैलरी अहम श्रेणियां हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार मिलेनियल्स और जैनरेशन जेड कन्ज्यूमर्स जैन एक्स की तुलना में 60 प्रतिशत अधिक कस्टमाइजेशन पर जा रहे हैं। पांच में से एक कस्टमर एक्सक्लूसिव कस्टम प्रोडक्ट के लिये 20 प्रतिशत अधिक पेमेंट करने को तैयार है। देश में करीब 248 डी2सी स्टार्टअप्स हैं जो कस्टमाइज्ड प्रोडक्ट्स ऑफर कर रहे हैं। इस बैंडवेगन में नायका, जीवा, मोकोबारा और पर्पल भी शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार यदि डी2सी और ई-कॉमर्स सेक्टर्स आगे बढ़ते हैं तो ग्रोथ ग्राफ में कस्टमाइजेशन का रोल बड़ा होगा। कुछ वर्ष पूर्व की बात करें तो कस्टमाइजेशन टी-शर्ट्स, मग तक ही सीमित था। आज तो कन्ज्यूमर्स शॉपिंग एक्सपीरियंस को बढ़ाने के लिये सब कुछ कस्टमाइज चाहते हैं। कस्टमाइज्ड ब्राण्ड्स ने फर्नीचर और एपेरल श्रेणी में भी काफी बेहतर प्रदर्शन किया है। इसके अलावा हेयर केयर, फुटवियर और एसेसरीज भी अहम श्रेणियों के रूप में आगे आई हैं। परफ्यूम भी एक ऐसी कैटेगरी है, जो तेजी से आगे बढ़ रही है। वूमैनलाइकयू की फाउंडर के अनुसार यह बड़ा मार्केट है। लोग अपनी समस्या को दूर कर प्रोडक्ट खरीदने के लिये ज्यादा राशि देने को तैयार हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार जब कन्ज्यूमर की कस्टमाइज सूचना ली जाती है तो एक कॉस्ट अटेच्ड होती है। इस सूचना को बाद की परचेज में भी काम लिया जा सकता है। ऐसे में कस्टमर को रिपीट परचेज करने के लिए भी आकर्षित किया जाता है। ब्राण्ड लॉयल्टी बढऩे की सम्भावना बनती है, जो ब्राण्ड के लिये तो हर लिहाज से बेहतर स्थित कही जायेगी।