प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार कहते हैं ...यही समय है सही समय है...। कंजम्पशन डिमांड साइकल में भी अपट्रेंड है। मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी यूटिलाइजेशन 76 परसेंट तक पहुंच गया है। पर न जाने क्यों प्रधानमंत्री मोदी की ....सही समय वाली बात इंडिया इंक के गले नहीं उतर रही। हालांकि ऐसा नहीं है कि कैपिटल इंवेस्टमेंट भारत में ही स्लो है। दुनियाभर के देशों का ट्रेंड इसी ओर इशारा करता है। ऑरेकल ऑफ ओमाहा कहलाने वाले दिग्गज इंवेस्टर वॉरेन बफेट की कंपनी बर्कशायर हाथवे 334 बिलियन डॉलर के कैश रिजर्व पर बैठी है। वे कहते हैं इंवेस्टमेंट के मौके घट रहे हैं। ब्लैकरॉक का नाम आपने सुना होगा। यह दुनिया की सबसे बड़ी असैट मैनेजर है और 11.58 ट्रिलियन डॉलर के असैट्स मैनेज करती है। इतने बड़े फंड से यह दुनिया को चलाती है। सरकारें बनाती और गिराती है। इसी कंपनी के सीईओ लैरी फिंक ने कहा है tens of trillions of dollars of financial firepower is sitting idle in cash....यानी दसियों लाख करोड़ डॉलर की फाइनेंशियल फायर पावर बैंकों में पड़ी है। क्योंकि ट्रेड वॉर के आउट ऑफ कंट्रोल हो जाने की चिंता है और अमेरिका की इकोनॉमी की पिक्चर भी क्लीयर नजर नहीं आ रही है। फिंक कहते हैं कि यूरोप के बैंकों में 12 ट्रिलियन (लाख करोड़) यूरो यानी करीब 1100 लाख करोड़ रुपये कैश में पड़े हैं। अमेरिका में 11 ट्रिलियन यानी करीब 900 लाख करोड़ रुपये मनी मार्केट फंड्स में हैं। जब बाजार में अनिश्चितता होती है तो सब अपने हाथ में कैश रखना चाहते हैं। अभी पिछले सप्ताह अमेरिकी प्रेसिडेंट डॉनाल्ड ट्रंप ने गल्फ के देशों सऊदी अरब, यूएई और कतर का दौरा किया था। उन्होंने दावा किया था कि इस छोटे से दौरे से उन्होंने 2 ट्रिलियन डॉलर की डील्स कर ली हैं। ...कतर से लक्जरी एयरक्राफ्ट गिफ्ट मिल गया वो अलग से। अमेरिका के ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बीसेंट की मौजूदगी में फिंक कहते हैं कि ट्रंप द्वारा ग्लोबल ट्रेड को डिसरप्ट कर देने के बावजूद कई ग्लोबल इंवेस्टर अभी भी अमेरिका पर ओवरवेट हैं। अमेरिका के बाहर थोड़ा सा निवेश करने से यूरोप को बहुत फायदा हुआ है और भारत, जापान और खाड़ी के देशों को लेकर इंवेस्टर्स कॉन्फिडेंस बढ़ रहा है। लेकिन यह कब तक बना रहेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है क्योंकि ट्रंप ने चीन को सिर्फ 90 दिन की मोहलत दी है। अमेरिका के घाटे की चर्चा करना जरूरी है लेकिन सिर्फ 3 परसेंट की जीडीपी ग्रोथ से अमेरिका इसे मैनेज कर सकता है।