भारत अपनी ग्रीन एनर्जी ड्राइव में अब भू-तापीय ऊर्जा (जियोथर्मल एनर्जी) से बिजली जेनरेशन के पहले कमर्शियल प्रॉजेक्ट को राजस्थान में लगाने की तैयारी कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार आईआईटी मद्रास राजस्थान के बाड़मेर स्थित रागेस्वरी गैस फील्ड में तीन छोड़े हुए (अबेनडन्ड) ऑइल वैल पर फीजिबिलिटी स्टडी करेगी। इस प्रोजेक्ट के तहत छोड़े हुए तेल और गैस कुओं को भू-तापीय ऊर्जा कुओं में बदलने से 450 किलोवॉट बिजली बनाई जा सकेगी। दरअसल जमीन की गर्मी से भाप बनाकार टर्बाइन चला बिजली बनाने के जियोथर्मल पावर जेनरेशन कहते हैं। इस प्रॉजेक्ट को तैयार करने, पेटेंट, पावर परचेज एग्रीमेंट आदि पर आईआईटी मद्रास और केयर्न वेदांता के बीच एग्रीमेंट की योजना है। भू-तापीय ऊर्जा से उत्पन्न बिजली बेचने से हुई आय का उपयोग आईआईटी मद्रास आगे की संभावना और अनुसंधान के लिए करेगा। इस रिसर्च प्रॉजेक्ट का उद्देश्य बंद हो चुके तेल और गैस भंडारों से भू-तापीय ऊर्जा का वाणिज्यिक स्तर पर उत्पादन करने की संभावना तलाशना है। वर्तमान में भारत में भू-तापीय ऊर्जा क्षमता का बहुत सीमित है और ज्यादातर कैप्टिव पावर के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। विश्व स्तर पर 2019 में भू-तापीय क्षमता 15.4 गीगावाट थी, जिसमें से 23 परसेंट अकेले अमेरिका में स्थापित थी। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पैनल के अनुसार, वैश्विक भू-तापीय ऊर्जा क्षमता 35 गीगावाट से 2 टेरावाट तक हो सकती है। आज आइसलैंड, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, केन्या, कोस्टारिका और अल साल्वाडोर जैसे देश अपनी कुल बिजली का 15 परसेंट से अधिक भू-तापीय स्रोतों से प्राप्त कर रहे हैं।