करीब 11 साल से लटके एक मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज्यादा क्वांटिटी में माल खरीदने पर मिलने वाला एक्स्ट्रा डिस्काउंट भेदभावपूर्ण नहीं है और यह कंपीटिशन कमिशन के दायरे में नहीं आता है। सुप्रीम कोर्ट ने अब भंग हो चुके कंपीटिशन अपीलैट ट्रिब्यूनल (कॉम्पैट) के फैसले की पुष्टि करते हुए कहा कि इस तरह की प्राइसिंग तब तक भेदभावपूर्ण नहीं मानी जाएगी जब तक कंपनी एक ही बिल साइज पर अलग-अलग बायर को अलग-अलग डिस्काउंट दे रही हो। जस्टिस विक्रम नाथ और प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने कॉम्पेट के आदेश की पुष्टि करते हुए कपूर ग्लास पर लंबे समय तक मुकदमेबाजी के लिए 5 लाख का जुर्माना लगाने का भी आदेश दिया। दरअसल कपूर ग्लास कांच के एम्प्यूल (इंजेक्शन) और शीशी बनाती है। इसने आरोप लगाया कि बोलोसिलिकेट वर्जिन बोरोसिलिकेट ग्लास ट्यूब बनाने वाली एक सप्लायर भेदभावपूर्ण प्राइसिंग ऑफर कर रही है। आरोप लगाया गया कि यह सप्लायर अपने जेवी यूनिट को एक्स्ट्रा डिस्काउंट और आसान शर्त पर माल दे रही है जिससे बाजार में अन्य डाउनस्ट्रीम कंपनियों को नुकसान हो रहा था। वर्ष 2012 में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने सप्लायर शॉट ग्लास को अनुचित प्राइसिंग और मार्केट एक्सैस नहीं देने के आरोप में मार्केट में दबदबे का गलत इस्तेमाल करने का दोषी पाते हुए 5.66 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। लेकिन कॉम्पेट ने इस फैसले को उलट दिया। कॉम्पेट ने कहा कि वॉल्यूम बेस्ड डिस्काउंटिंग तब तक गलत नहीं है जब तक कि एक ही बिल साइज के अलग-अलग बायर्स के अलग-अलग प्राइस नहीं वसूली गई हो। जो बड़ा बायर है उसे बेहतर प्राइस मिलती है। ऐसे में यदि कोई अन्य बायर उतनी ही मात्रा बराबर का ऑर्डर नहीं देने के बावजूद भेदभावपूर्ण प्राइसिंग की शिकायत करता है तो यह एंटी-कंपीटिशन के दायरे में नहीं आता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि कपूर ग्लास को सप्लाई रोकना भी गलत नहीं था क्योंकि वह सप्लायर की नकली ब्रांडिंग का इस्तेमाल कर रहा था। कॉम्पैट ने कपूर ग्लास पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था जिसे अब सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया है।