नफा नुकसान रिसर्च
चंद्रकांता सीरियल में विष कन्या की कहानी तो आपने सुनी होगी। लेकिन दुनिया में एक विष पुरुष तैयार किया जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का डेटा कहता है कि दुनिया में साल में करीब 54 लाख लोगों को सांप काटते हैं जिनमें से 27 लाख पर जहर का असर होता है। इनसे से करीब 1.38 लाख की मौत होती है। इनमें से 58 हजार मौतें अकेले भारत में होती हैं। इनमें से ज्यादातर को बचाया जा सकता है लेकिन एंटी वेनम (सांप के जहर को काटने वाली वैक्सीन) की बहुत किल्लत है। हालांकि भारत सरकार का डेटा कहता है कि भारत में हर साल 30 से 40 लाख लोगों को सांप काटते हैं। स्नेकबाइट यानी सांप के जहर से मौत होने का मामला कितना बड़ा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत सरकार ने 2030 तक मौतों को घटाकर आधा करने का टार्गेट रखा है। अभी सांप के जहर को इंजेक्शन के जरिए घोड़े में डालकर एंटी वेनम वैक्सीन बनाई जाती है। लेकिन वैज्ञानिकों की एक टीम अमेरिका के रहने वाले टिम फ्रीडे के खून से जल्द ही एंटीवेनम तैयार करने का दावा कर रही है। इसके लिए टिम फ्रीडे ने 20 साल में 200 बार खुद को जहरीले सांपों से कटवाया। जिससे वे विष पुरुष बन गए और उन पर सांप के काटने का कोई असर नहीं होता। अब उनके खून में मौजूद इन एंटीबॉडीज का इस्तेमाल कर दवा बनाई जा रही है। अभी जो एंटीवेनम बाजार में उपलब्ध है वो हर सांप के लिए अलग होता है। जैसे नाग के लिए अलग और करैट के लिए अलग। लेकिन माना जा रहा है कि टिम के खून में इतने तरह के एंटीबॉडी डवलप हो चुके हैं कि उनके खून से बनी दवा रामबाण होगी यानी हर तरह के सांप के जहर को काटने के लिए इस्तेमाल की जा सकेगी। फिलहाल इस दवा की एनीमल टेस्टिंग हुई है। आंकड़े ये भी बताते हैं कि शरीर में सांप का जहर फैलने से हर साल करीब पांच लाख लोगों के अंग काटने पड़ते हैं या फिर वो स्थायी तौर पर विकलांग हो जाते हैं। फ्रीडे ने 20 सालों में खुद को 200 से ज्यादा बार मांबा, कोबरा, ताइपन और करैट से जहर लेकर खुद को 700 से ज्यादा इंजेक्शन लगाए हैं। हालांकि कोबरा के काटने के चलते दो बार वे कोमा में भी जा चुके हैं। एंटी वेनम बनाने में सबसे बड़ा चैलेंज यह है कि माना राजस्थान में मिलने वाले कोबरा के जहर से एंटी वेनम बनाया गया है तो जरूरी नहीं कि वह तमिलनाडु में कोबरा पीडि़त में भी उतना ही असरदार हो। आप जानते है भारत सरकार ने दुनिया के जाने माने सांप विशेषज्ञ रोम्युलस विटेकर को पद्मश्री से सम्मानित किया था। फ्रीडे के साथ जुडी रिसर्च कंपनी का कहना है उनका ज्यादातर फोकस दो फैमिली के जहरीले सांपों पर है। एक में कोरल सांप, माम्बा, कोबरा, ताइपन और करैत हैं। इन्हें एलापिड्स कहा जाता है जिनके जहर में न्यूरोटॉक्सिन होते हैं जिससे पैरालिसिस हो सकता है। रिसर्च टीम ने सबसे खतरनाक सांपों में से 19 एलापिड्स को चुना। इसके बाद फ्रीडे के ब्लड की जांच शुरू की गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि फ्रीडे के शरीर में दो तरह के न्यूरोटॉक्सिन को बेअसर करने वाले एंटीबॉडी की पहचानी गई हैं। उन्होंने अपने एंटीवेनम कॉकटेल को बनाने के लिए इसमें एक दवा मिलाई ताकि यह तीसरी कैटेगरी के सांपों के लिए भी कारगर हो। चूहों पर किए गए प्रयोगों में इस कॉकटेल का इस्तेमाल किया गया। इससे चूहे 19 में से 13 जहरीले सांप के जहर से बच गए बाकी छह के जहर का असर कम हुआ। अब यह टीम एंटीबॉडी पर रिसर्च को आगे बढ़ा रही है। इसमें एक और कंपोनेंट तलाशा जा रही है जिससे यह सभी तरह के
एलापिड्स सांप के जहर की दवा बनाने में काम आ सके। सांपों की दूसरी श्रेणी वाइपर न्यूरोटॉक्सिन के बजाय हेमोटॉक्सिन पर ज्यादा निर्भर करती है। इसका असर सीधे खून पर होता है। कुल मिलाकर सांप के जहर में लगभग एक दर्जन तरह के विष होते हैं इनमें साइटोटॉक्सिन भी शामिल हैं जो सीधे कोशिकाओं को मारते हैं।
एक बड़ी ही
रोचक बात...
ईशा फाउंडेशन वाले सद्गुरु जग्गी वासुदेव को तो आप जानते ही हैं। वे सांप का जहर पीते हैं। उन्होंने एक बड़ी रोचक बात कही। वे कहते हैं कि हमारे शरीर के पाचन तंत्र में सांप के जहर को पचाने की ताकत होती है। सांप का जहर प्रोटीन होता है और शरीर के पाचक रस इसे पचा लेते हैं। लेकिन पाचनतंत्र में कोई अल्सर या घाव नहीं होना चाहिए। सांप का जहर ब्लड सर्कुलेशन यानी खून के दौरे में शामिल होने पर ही जानलेवा होता है। पहले जिन्हें सपेरा कहा जाता था अब इन्हें सर्पमित्र कहते हैं क्योंकि सांप के जहर को कलेक्ट करने की इंडस्ट्री से जुड़े हैं।