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27-06-2025

किस मुहाने पर है आखिर ‘Hill Tourism’?

  •  हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला डोमेस्टिक ट्यूरिस्ट के दिल के करीब है। गर्मियों में यदि किसी हिल स्टेशन पर विजिट करने की प्लानिंग होती है तो सबसे पहला नाम शिमला का ही आता है। यह मोस्ट फेवरेट हिल स्टेशन है। गत वर्षों में हमने देखा है कि पर्यटकों की आवाजाही बहुत ज्यादा बढ़ गई है, इससे रास्ते बाधित तो होते ही हैं, पहाड़ी स्थलों के सौंदर्य को धक्का भी लगता है। हाल ही में शिमला के डेपूटी कमिश्नर ने कहा था कि करीब तीन लाख वाहनों ने गत दो सप्ताह में शहर में प्रवेश किया है। प्रतिदिन करीब 15,000 वाहनों ने प्रवेश किया। ऐसा ही माजरा देहरादून, नैनीताल, मसूरी, मनाली, धर्मशाला का है। उत्तर भारत के हिल स्टेशंस पर ट्यूरिस्ट की आवाजाही काफी ज्यादा बढ़ रही है और इससे यहां पर जाम, दुर्घटनाओं, पानी, टॉयलेट जाम की समस्याएं आ रही है। अनेक ट्यूरिस्ट के साथ तो ऐसा होता है कि वैकेशन का आधा वक्त तो सडक़ पर ट्रेफिक जाम में फंसने से ही निकल जाता है। होटलों में पानी की कमी की समस्या आती है। इससे बड़ी कीमत यहां के लोकल्स चुका रहे हैं। पहाड़ों के शांत वातावरण को गाडिय़ों के शोर ने बाधित किया है। इससे यहां के पर्यावरण संतुलन में समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। हम देख रहे हैं कैसे यहां की वादियां दूषित हो रही हैं, पहाड़ दरख रहे हैं। वर्ष 2023 के आंकड़ों को देखें तो ट्यूरिस्ट की संख्या 43 प्रतिशत बढ़ गई है। इससे पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। पहाड़ी स्थल स्थानीय लोगों और कुछ पर्यटकों को ही झेल सकते हैं लेकिन यदि लाखों की संख्या में विजिटर्स आयेंगे तो पर्यावरण दूषित तो होगा ही।  यह सही है कि पर्यटक यहां के स्थानीय लोगों की आय का जरिया हैं लेकिन बेतहाशा वृद्धि चिंताजनक है। देहरादून से मसूरी के बीच 26 किलोमीटर का एलीवेटेड एक्सपे्रसवे बनाने की इजाजत दी गई है। इससे ड्राइविंग टाइम केवल 26 मिनट रह जायेगा। लेकिन चिंताजनक यह है कि इसे बनाने के लिये कितने पड़े कटेंगे और कितने परिवारों को डिस्प्लेस किया जायेगा। छोटे-छोटे पहाड़ी स्थलों में इतने असंख्य वाहनों को पार्क करने का स्पेस नहीं है और दूसरा इतने वाहनों से होने वाला प्रदूषण अलग नुकसान पहुंचा रहा है। जरूरत इस बात की है कि ज्यादा संख्या में रोपवे, केबल्स लगाये जायें, ताकि वाहनों की एंट्री कम से कम हो। देहरादून-मसूरी के बीच केबल सिस्टम इन्स्टॉल हो, न कि एक्सपे्रसवे बने। इससे कॉस्टिंग भी कम आयेगी। ‘ओवर ट्यूरिज्म’ केन्द्र सरकार के लिये भी सोचनीय विषय है। चारधाम हाईवे प्रोजेक्ट को अपू्रव करना क्या सही कदम है? यह केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के लिये क्या सही निर्णय है? इन राज्यों में फोर लेनिंग प्रोजेक्ट्स को होल्ड पर रखना होगा। इसके बजाये रोपवे प्रोजेक्ट्स पर ध्यान देना चाहिये। विजन ऐसा हो कि हम ट्यूरिस्ट को इन राज्यों में वैलकम करें, न कि कारों, टेक्सियों या बसों को।

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किस मुहाने पर है आखिर ‘Hill Tourism’?

 हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला डोमेस्टिक ट्यूरिस्ट के दिल के करीब है। गर्मियों में यदि किसी हिल स्टेशन पर विजिट करने की प्लानिंग होती है तो सबसे पहला नाम शिमला का ही आता है। यह मोस्ट फेवरेट हिल स्टेशन है। गत वर्षों में हमने देखा है कि पर्यटकों की आवाजाही बहुत ज्यादा बढ़ गई है, इससे रास्ते बाधित तो होते ही हैं, पहाड़ी स्थलों के सौंदर्य को धक्का भी लगता है। हाल ही में शिमला के डेपूटी कमिश्नर ने कहा था कि करीब तीन लाख वाहनों ने गत दो सप्ताह में शहर में प्रवेश किया है। प्रतिदिन करीब 15,000 वाहनों ने प्रवेश किया। ऐसा ही माजरा देहरादून, नैनीताल, मसूरी, मनाली, धर्मशाला का है। उत्तर भारत के हिल स्टेशंस पर ट्यूरिस्ट की आवाजाही काफी ज्यादा बढ़ रही है और इससे यहां पर जाम, दुर्घटनाओं, पानी, टॉयलेट जाम की समस्याएं आ रही है। अनेक ट्यूरिस्ट के साथ तो ऐसा होता है कि वैकेशन का आधा वक्त तो सडक़ पर ट्रेफिक जाम में फंसने से ही निकल जाता है। होटलों में पानी की कमी की समस्या आती है। इससे बड़ी कीमत यहां के लोकल्स चुका रहे हैं। पहाड़ों के शांत वातावरण को गाडिय़ों के शोर ने बाधित किया है। इससे यहां के पर्यावरण संतुलन में समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। हम देख रहे हैं कैसे यहां की वादियां दूषित हो रही हैं, पहाड़ दरख रहे हैं। वर्ष 2023 के आंकड़ों को देखें तो ट्यूरिस्ट की संख्या 43 प्रतिशत बढ़ गई है। इससे पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। पहाड़ी स्थल स्थानीय लोगों और कुछ पर्यटकों को ही झेल सकते हैं लेकिन यदि लाखों की संख्या में विजिटर्स आयेंगे तो पर्यावरण दूषित तो होगा ही।  यह सही है कि पर्यटक यहां के स्थानीय लोगों की आय का जरिया हैं लेकिन बेतहाशा वृद्धि चिंताजनक है। देहरादून से मसूरी के बीच 26 किलोमीटर का एलीवेटेड एक्सपे्रसवे बनाने की इजाजत दी गई है। इससे ड्राइविंग टाइम केवल 26 मिनट रह जायेगा। लेकिन चिंताजनक यह है कि इसे बनाने के लिये कितने पड़े कटेंगे और कितने परिवारों को डिस्प्लेस किया जायेगा। छोटे-छोटे पहाड़ी स्थलों में इतने असंख्य वाहनों को पार्क करने का स्पेस नहीं है और दूसरा इतने वाहनों से होने वाला प्रदूषण अलग नुकसान पहुंचा रहा है। जरूरत इस बात की है कि ज्यादा संख्या में रोपवे, केबल्स लगाये जायें, ताकि वाहनों की एंट्री कम से कम हो। देहरादून-मसूरी के बीच केबल सिस्टम इन्स्टॉल हो, न कि एक्सपे्रसवे बने। इससे कॉस्टिंग भी कम आयेगी। ‘ओवर ट्यूरिज्म’ केन्द्र सरकार के लिये भी सोचनीय विषय है। चारधाम हाईवे प्रोजेक्ट को अपू्रव करना क्या सही कदम है? यह केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के लिये क्या सही निर्णय है? इन राज्यों में फोर लेनिंग प्रोजेक्ट्स को होल्ड पर रखना होगा। इसके बजाये रोपवे प्रोजेक्ट्स पर ध्यान देना चाहिये। विजन ऐसा हो कि हम ट्यूरिस्ट को इन राज्यों में वैलकम करें, न कि कारों, टेक्सियों या बसों को।


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