गत करीब तीन वर्ष में डेबू फिल्ममेकर्स को विफलता का मुंह देखना पड़ रहा है। ऐसे में इंडस्ट्री उनके सपोर्ट में कम ही नजर आ रही है। सफल निर्देशकों की फिल्में भी फ्लॉप शो कर रही हैं और ऐसे में इंडस्ट्री निराशा के दौर में नजर आती है। वर्ष 2022 में जहां 39 डेबू फिल्म डायरेक्टर्स ने एंट्री ली थी, वहीं वर्ष 2024 में यह संख्या 32 पर आ गई। इंडस्ट्री ट्रेड एनेलिस्ट के अनुसार चालू वर्ष में अभी तक केवल 15 फस्र्ट टाइम फिल्ममेकर्स ने थियेट्रिकल रिलीज दी है। यदि टोटल नम्बर ऑफ रिलीज्ड हिंदी फिल्मों की संख्या को देखें तो यह वर्ष 2022 से 2024 में बढ़ी है। गत वर्ष 221 फिल्में रिलीज की गई जबकि 2022 में यह आंकड़ा 194 पर था लेकिन शेयर ऑफ डेबू डायरेक्टर्स 20.1 प्रतिशत से 14.5 प्रतिशत पर आ गया। इवेंट मैनेजमेंट कम्पनी फेंटसी फिल्म्स के फाउंडर और प्रड्यूसर के अनुसार आजकल मार्जिन को मिनिमाइज करने का दौर चल रहा है। पहले की बात करें तो डेबू डायरेक्टर की पहली फिल्म ज्यादा सक्सेसफुल न हो तो चलता था, यह माना जाता था कि आगे बेहतर करने की गुंजाइश है लेकिन अब तो पहली फिल्म ही बेस्ट फिल्म होनी चाहिये, तभी आगे बढ़ पायेंगे। आज का दर्शक पहले से ज्यादा कठोर है। वह विफल फिल्म के डायरेक्टर से जल्दी ही किनारा कर लेता है। ऐसे में पोस्ट कोविड फिल्म निर्माता काफी चैलेंजिंग दौर देख रहे हैं। वर्ष 2024 में फिल्म का सक्सेस अनुपात 3.2 प्रतिशत रह गया। ग्रॉस बॉक्स ऑफिस कलैक्शन गत वर्ष 11,833 करोड़ रुपये पर आ गया। जबकि वर्ष 2023 में यह 12,226 करोड़ रुपये रहा था। यह डेटा मीडिया एंड एंटरटेंमेंट रिसर्च फर्म ऑरमैक्स मीडिया ने दिया है। इंडस्ट्री इनसाइडर्स के अनुसार टेलेंट कॉस्ट बढ़ रही है। फिल्म निर्माता सिक्वल्स बना रहे हैं। रीमेक का चलन बढ़ रहा है, नया कंटेंट देने के प्रयास कम हो रहे हैं। शायद यह स्ट्रेटजी वर्क भी कर रही हैं। गत वर्ष स्त्री 2, भूल भुलैया 2 और सिंघम अगेन की सक्सेस स्टोरी तो यही बता रही है। बेन एंड कम्पनी की ग्लोबल एमएंडए 2025 रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल मीडिया एंड एंटरटेंमेंट इंडस्ट्री में हालिया मर्जर्स और एक्वीजीशंस हमें चकित करते हैं। फिल्म मेकर्स के अनुसार डेबू फिल्ममेकर्स स्ट्रीमिंग प्लेटफॉम्र्स के लिये कंटेंट बना सकते हैं लेकिन थियेट्रिकल डेबू करना कठिन है। स्टूडियो फॉर रीजनल फिल्म्स 91 फिल्म स्टूडियो के फाउंडर और सीईओ के अनुसार स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म के लिये कंटेंट बनाना शायद आसान है लेकिन थियेटर के लिये फिल्म बनाना चुनौतिपूर्ण है। शायद यही कारण हो कि स्ट्रीमिंग प्लेटफॉम्र्स पर दर्शक संख्या इनक्रीज हो रही है। थियेटर्स में दर्शक कम हो रहे हैं। बड़े फिल्म सितारों की फिल्मों का फ्लॉप होना भी यही संकेत दे रहा है।