TOP

ई - पेपर Subscribe Now!

ePaper
Subscribe Now!

Download
Android Mobile App

Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

16-05-2025

एशिया-पैसिफिक रीजन की तुलना में ऑफिस फिट-आउट इंडिया कॉस्ट काफी कम

  •  भारत व्यापक एशिया-पैसिफिक रीजन की तुलना में ऑफिस फिट-आउट के लिए एक यूनिक कॉस्ट स्ट्रक्चर पेश करता है। यह जानकारी एक रिपोर्ट में दी गई। जेएलएल की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में फिट-आउट लागत का 32 प्रतिशत हिस्सा बिल्डरों के कार्यों का है, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र के औसत 41 प्रतिशत से काफी कम है। यह भारत के प्रतिस्पर्धी लेबल मार्केट कैपेसिटी को दर्शाता है। फिट आउट में वर्कस्पेस का निर्माण, फर्नीचर, डिजाइन आदि शामिल है। मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल सर्विस, जिसमें हीटिंग, वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग (एचवीएसी), इलेक्ट्रिकल, फायर और यूपीएस सिस्टम भारत में कुल लागत का 29 प्रतिशत हिस्सा हैं, जो एपीएसी औसत 21 प्रतिशत से अधिक है। जो दिखाता है कि भारत में मकान मालिक किराये की संपत्तियों में आवश्यक प्रणालियों और सुविधाओं को प्रदान करने के लिए कम जिम्मेदार हैं और उनके प्रावधान कम व्यापक हैं, जिसकी वजह से किरायेदारों को इन आवश्यक प्रणालियों में निवेश करने के लिए अधिक वित्तीय बोझ उठाना पड़ता है। जेएलएल के पीडीएस इंडिया मैनेजिंग डायरेक्टर ने कहा कि भारत का फिट-आउट कॉस्ट स्ट्रक्चर एपीएसी क्षेत्र में एक अनूठी प्रोफाइल पेश करता है। जबकि हम श्रम-गहन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण बचत देखते हैं, टेक्नोलॉजी और मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल सर्विस में उच्च निवेश की ओर एक स्पष्ट प्रवृत्ति है। यह भारत में मॉडर्न, सस्टेनेबल वर्कप्लेस बनाने में चुनौतियों और अवसरों दोनों को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि भारत में फिट-आउट प्रोजेक्ट की योजना बनाने वाली कंपनियों को सलाह दी जाती है कि वे इन कारकों पर ध्यान दें, साथ ही संभावित मुद्रा उतार-चढ़ाव और आयात शुल्क पर भी विचार करें, ताकि सटीक रूप से बजट बनाया जा सके और अट्रैक्टिव, मॉडर्न ऑफिस स्पेस बनाए जा सकें जो उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं और उद्देश्यों को पूरा करते हों। भारत के फिट-आउट परिदृश्य में टेक्नोलॉजी और स्मार्ट फीचर्स को अपनाना स्पष्ट है, जिसमें सुरक्षा, आईटी और एवी खर्च कुल व्यय का 17 प्रतिशत है। यह देश भर में तकनीकी रूप से एडवांस्ड ऑफिस स्पेस की ओर बढ़ते रुझान को दर्शाता है। फर्नीचर, फिक्स्चर और इक्विपमेंट (एफएफई) कुल लागत में 16 प्रतिशत का योगदान करते हैं। जेएलएल के लीड इकोनॉमिस्ट और रिसर्चर और आरईआईएस भारत प्रमुख, डॉ. सामंतक दास ने कहा कि हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि हाई-परफॉर्मेंस वाले, सस्टेनेबल वर्कस्पेस बनाना भारतीय बाजार में एक सर्वोपरि रणनीतिक अनिवार्यता बन गई है, जो टैलेंट को आकर्षित करने और बनाए रखने की इच्छा से प्रेरित है। डॉ. दास ने कहा कि ये मॉडल मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर के पुन: उपयोग और वृद्धि को प्राथमिकता देते हैं, जो जिम्मेदार और दूरदर्शी रियल एस्टेट प्रथाओं के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं, जो न केवल पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हैं बल्कि संगठनों के लिए दीर्घकालिक लागत लाभ भी प्रदान करते हैं।

Share
एशिया-पैसिफिक रीजन की तुलना में ऑफिस फिट-आउट इंडिया कॉस्ट काफी कम

 भारत व्यापक एशिया-पैसिफिक रीजन की तुलना में ऑफिस फिट-आउट के लिए एक यूनिक कॉस्ट स्ट्रक्चर पेश करता है। यह जानकारी एक रिपोर्ट में दी गई। जेएलएल की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में फिट-आउट लागत का 32 प्रतिशत हिस्सा बिल्डरों के कार्यों का है, जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र के औसत 41 प्रतिशत से काफी कम है। यह भारत के प्रतिस्पर्धी लेबल मार्केट कैपेसिटी को दर्शाता है। फिट आउट में वर्कस्पेस का निर्माण, फर्नीचर, डिजाइन आदि शामिल है। मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल सर्विस, जिसमें हीटिंग, वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग (एचवीएसी), इलेक्ट्रिकल, फायर और यूपीएस सिस्टम भारत में कुल लागत का 29 प्रतिशत हिस्सा हैं, जो एपीएसी औसत 21 प्रतिशत से अधिक है। जो दिखाता है कि भारत में मकान मालिक किराये की संपत्तियों में आवश्यक प्रणालियों और सुविधाओं को प्रदान करने के लिए कम जिम्मेदार हैं और उनके प्रावधान कम व्यापक हैं, जिसकी वजह से किरायेदारों को इन आवश्यक प्रणालियों में निवेश करने के लिए अधिक वित्तीय बोझ उठाना पड़ता है। जेएलएल के पीडीएस इंडिया मैनेजिंग डायरेक्टर ने कहा कि भारत का फिट-आउट कॉस्ट स्ट्रक्चर एपीएसी क्षेत्र में एक अनूठी प्रोफाइल पेश करता है। जबकि हम श्रम-गहन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण बचत देखते हैं, टेक्नोलॉजी और मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल सर्विस में उच्च निवेश की ओर एक स्पष्ट प्रवृत्ति है। यह भारत में मॉडर्न, सस्टेनेबल वर्कप्लेस बनाने में चुनौतियों और अवसरों दोनों को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि भारत में फिट-आउट प्रोजेक्ट की योजना बनाने वाली कंपनियों को सलाह दी जाती है कि वे इन कारकों पर ध्यान दें, साथ ही संभावित मुद्रा उतार-चढ़ाव और आयात शुल्क पर भी विचार करें, ताकि सटीक रूप से बजट बनाया जा सके और अट्रैक्टिव, मॉडर्न ऑफिस स्पेस बनाए जा सकें जो उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं और उद्देश्यों को पूरा करते हों। भारत के फिट-आउट परिदृश्य में टेक्नोलॉजी और स्मार्ट फीचर्स को अपनाना स्पष्ट है, जिसमें सुरक्षा, आईटी और एवी खर्च कुल व्यय का 17 प्रतिशत है। यह देश भर में तकनीकी रूप से एडवांस्ड ऑफिस स्पेस की ओर बढ़ते रुझान को दर्शाता है। फर्नीचर, फिक्स्चर और इक्विपमेंट (एफएफई) कुल लागत में 16 प्रतिशत का योगदान करते हैं। जेएलएल के लीड इकोनॉमिस्ट और रिसर्चर और आरईआईएस भारत प्रमुख, डॉ. सामंतक दास ने कहा कि हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि हाई-परफॉर्मेंस वाले, सस्टेनेबल वर्कस्पेस बनाना भारतीय बाजार में एक सर्वोपरि रणनीतिक अनिवार्यता बन गई है, जो टैलेंट को आकर्षित करने और बनाए रखने की इच्छा से प्रेरित है। डॉ. दास ने कहा कि ये मॉडल मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर के पुन: उपयोग और वृद्धि को प्राथमिकता देते हैं, जो जिम्मेदार और दूरदर्शी रियल एस्टेट प्रथाओं के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं, जो न केवल पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हैं बल्कि संगठनों के लिए दीर्घकालिक लागत लाभ भी प्रदान करते हैं।


Label

PREMIUM

CONNECT WITH US

X
Login
X

Login

X

Click here to make payment and subscribe
X

Please subscribe to view this section.

X

Please become paid subscriber to read complete news