उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अगर बैंक से ऋण लाभ कमाने के उद्देश्य से लिया गया है तो उसे कंज्यूमर संरक्षण अधिनियम के तहत ‘‘कंज्यूमर’’ नहीं कहा जा सकता। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ राष्ट्रीय कंज्यूमर विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के एक आदेश के खिलाफ सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। एनसीडीआरसी ने बैंक को निर्देश दिया था कि वह क्रेडिट इंफॉर्मेशन ब्यूरो ऑफ इंडिया लिमिटेड (सिबिल) को उधारकर्ता को चूककर्ता के रूप में कथित रूप से गलत रिपोर्ट करने के लिए एड ब्यूरो एडवरटाइजिंग प्राइवेट लिमिटेड को मुकदमेबाजी लागत के साथ 75 लाख रुपये का मुआवजा दे। इस मामले में, केंद्रीय बैंक ने रजनीकांत अभिनीत ‘कोचडयान’ के पोस्ट-प्रोडक्शन के लिए एड ब्यूरो को 10 करोड़ रुपये का ऋण मंजूर किया था। ब्यूरो द्वारा भुगतान में चूक के बाद, ऋण वसूली न्यायाधिकरण के समक्ष मुकदमा शुरू किया गया और 3.56 करोड़ रुपये के एकमुश्त भुगतान द्वारा मामले को अंतिम रूप दिया गया। एड ब्यूरो ने तर्क दिया कि एकमुश्त निपटान के अनुसार राशि का भुगतान करने के बावजूद, बैंक ने उसे सिबिल के लिए चूककर्ता के रूप में चिह्नित किया, जिसके परिणामस्वरूप उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा और व्यावसायिक नुकसान हुआ। इसके बाद कंपनी ने बैंक की ओर से सेवा में कमी का आरोप लगाते हुए एनसीडीआरसी से संपर्क किया। एनसीडीआरसी ने एड ब्यूरो की याचिका (कंज्यूमर शिकायत) को स्वीकार कर लिया और बैंक को 75 लाख रुपये का मुआवजा देने तथा यह प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया कि ऋण का निपटारा हो गया है तथा कोई बकाया नहीं बचा है। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम इस तथ्य से परिचित हैं कि प्रतिवादी संख्या एक (कंपनी) को केवल इस तथ्य के आधार पर कंज्यूमर की परिभाषा से बाहर नहीं रखा जा सकता कि वह एक वाणिज्यिक इकाई/उद्यम है।’’ पीठ ने कहा, ‘‘लेकिन इस निष्कर्ष पर पहुंचने में हमारे लिए यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि इस मामले में प्रतिवादी संख्या एक को ‘कंज्यूमर’ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि संबंधित लेनदेन, यानी परियोजना ऋण प्राप्त करने का लाभ कमाने वाली गतिविधि से घनिष्ठ संबंध था और वास्तव में, इस ऋण को स्वीकृत करने का प्रमुख उद्देश्य ‘कोचडयान’ नामक फिल्म के सफल पोस्ट-प्रोडक्शन पर लाभ कमाना था।’’