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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

09-01-2025

रेवड़ी पर चर्चा से घटा डवलपमेंट का खर्चा

  •  रेवड़ी का मौसम हाल ही खत्म हुआ था। फिर से रेवड़ी का मौसम आ गया। गजक-रेवड़ी नहीं चुनावी फ्रीबी•ा। पिछले दिनों दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने महिलाओं को 1 हजार रुपये महीने की स्कीम लॉन्च करते हुए कहा चुनाव जीते तो 2100 रुपये महीने मिलेंगे और पुजारियों को हर महीने 18 हजार। कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने दिल्ली आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कांग्रेस जीती तो हर महीने 2500 रुपये दिए जाएंगे। रेवड़ी का दबाव देखिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रैली में वायदा करना पड़ा कि जीते तो कोई भी चल रही रेवड़ी स्कीम बंद नहीं करेंगे। रेवड़ी की यह बीमारी इतनी सीरियस हो चुकी है कि आरबीआई ने दिसंबर की रिपोर्ट में लिखा बजट में घोषित रियायतों और फ्री गिफ्ट के कारण सरकारों के पास इंफ्रा डवलपमेंट के लिए पैसे कम पडऩे का खतरा है। आरबीआई ने कहा कि फ्रीबी में किसान कर्ज माफी, खेती और घर के लिए फ्री बिजली, फ्री बस, बेरोजगारी भत्ता और महिलाओं  को कैश तक सब शामिल है। आरबीआई के अनुसार वित्त वर्ष 25 के लिए राज्य फिस्कल डेफिसिट को 2.9 के मुकाबले 3.2 परसेंट तक बढ़ाने का बजट रख चुके हैं। इसके उलट केंद्र सरकार ने अपने खर्च को कंट्रोल कर लिया है और वित्त वर्ष 2024-25 के लिए 4.9 परसेंट फिस्कल डेफिसिट के टार्गेट को हासिल करने की तैयारी में है। आरबीआई ने स्टेट्स फाइनेंस: स्टडी ऑफ बजट्स ऑफ 2024-25 नाम की रिपोर्ट में कहा फ्रीबी•ा (रेवड़ी) आदि मदों में बढ़े खर्च के चलते राज्यों के खजाने पर सब्सिडी का बोझ खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है।

    बिजली गुल : बिजली कंपनियों की हेल्ध हेल्थ राज्यों के वित्तीय स्थिति के लिए बहुत गंभीर चुनौती है। आरबीआई के अनुसार राज्यों की बिजली कंपनियों पर बकाया कर्ज 2016-17  में 4.2 लाख करोड़ था जो 8.7 परसेंट सीएजीआर से बढ़ते हुए 2022-23 में 6.8 लाख करोड़ रुपये पर जा पहुंचा है जो कि जीडीपी का 2.5 परसेंट है। फाइनेंशियल इन्फ्लुएंसर और विजडम हैच के फाउंजर अक्षत श्रीवास्तव ने फ्री...फ्री...फ्री पोस्ट में लिखा कि अमेरिका का कर्ज 36 ट्रिलियन डॉलर है। ब्याज चुकाने में उसकी कमाई का 22 परसेंट हिस्सा जाता है। जबकि भारत का कर्ज 180 लाख करोड़ रुपये है और ब्याज चुकाने में कमाई का 40 परसेंट हिस्सा चला जाता है, जो अमेरिका से लगभग दोगुना है।

    इकोनॉमिस्ट बंटे हुए : एनेलिस्ट कहते हैं कि ऐसी स्कीम्स यूनिवर्सल (सबके  लिए) नहीं बल्कि पीएम किसान की तरह टार्गेटेड होनी चाहिएं। हाई सोसायटी की कार चलाने वाली महिला को 2100 रुपये की रेवड़ी क्यों दी जाए। 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन.के. सिंह ने रेवड़ी को आर्थिक तबाही का रास्ता बताया है। प्रधानमंत्री मोदी भी चुनाव में मुफ्तखोरी के वादों को खतरनाक बता चुके हैं। लेकिन एक वर्ग रेवड़ी को कंजम्पशन एक्सपेंडीचर (उपभोक्ता खर्च) बढ़ाने के लिए अच्छा कदम बताता है। जिसका मानना है हाथ में पैसा होता है तो खर्च होता है जिससे कंज्यूमर डिमांड बढ़ती है और सरकार को टेक्स मिलता है।

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रेवड़ी पर चर्चा से घटा डवलपमेंट का खर्चा

 रेवड़ी का मौसम हाल ही खत्म हुआ था। फिर से रेवड़ी का मौसम आ गया। गजक-रेवड़ी नहीं चुनावी फ्रीबी•ा। पिछले दिनों दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने महिलाओं को 1 हजार रुपये महीने की स्कीम लॉन्च करते हुए कहा चुनाव जीते तो 2100 रुपये महीने मिलेंगे और पुजारियों को हर महीने 18 हजार। कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने दिल्ली आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कांग्रेस जीती तो हर महीने 2500 रुपये दिए जाएंगे। रेवड़ी का दबाव देखिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रैली में वायदा करना पड़ा कि जीते तो कोई भी चल रही रेवड़ी स्कीम बंद नहीं करेंगे। रेवड़ी की यह बीमारी इतनी सीरियस हो चुकी है कि आरबीआई ने दिसंबर की रिपोर्ट में लिखा बजट में घोषित रियायतों और फ्री गिफ्ट के कारण सरकारों के पास इंफ्रा डवलपमेंट के लिए पैसे कम पडऩे का खतरा है। आरबीआई ने कहा कि फ्रीबी में किसान कर्ज माफी, खेती और घर के लिए फ्री बिजली, फ्री बस, बेरोजगारी भत्ता और महिलाओं  को कैश तक सब शामिल है। आरबीआई के अनुसार वित्त वर्ष 25 के लिए राज्य फिस्कल डेफिसिट को 2.9 के मुकाबले 3.2 परसेंट तक बढ़ाने का बजट रख चुके हैं। इसके उलट केंद्र सरकार ने अपने खर्च को कंट्रोल कर लिया है और वित्त वर्ष 2024-25 के लिए 4.9 परसेंट फिस्कल डेफिसिट के टार्गेट को हासिल करने की तैयारी में है। आरबीआई ने स्टेट्स फाइनेंस: स्टडी ऑफ बजट्स ऑफ 2024-25 नाम की रिपोर्ट में कहा फ्रीबी•ा (रेवड़ी) आदि मदों में बढ़े खर्च के चलते राज्यों के खजाने पर सब्सिडी का बोझ खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है।

बिजली गुल : बिजली कंपनियों की हेल्ध हेल्थ राज्यों के वित्तीय स्थिति के लिए बहुत गंभीर चुनौती है। आरबीआई के अनुसार राज्यों की बिजली कंपनियों पर बकाया कर्ज 2016-17  में 4.2 लाख करोड़ था जो 8.7 परसेंट सीएजीआर से बढ़ते हुए 2022-23 में 6.8 लाख करोड़ रुपये पर जा पहुंचा है जो कि जीडीपी का 2.5 परसेंट है। फाइनेंशियल इन्फ्लुएंसर और विजडम हैच के फाउंजर अक्षत श्रीवास्तव ने फ्री...फ्री...फ्री पोस्ट में लिखा कि अमेरिका का कर्ज 36 ट्रिलियन डॉलर है। ब्याज चुकाने में उसकी कमाई का 22 परसेंट हिस्सा जाता है। जबकि भारत का कर्ज 180 लाख करोड़ रुपये है और ब्याज चुकाने में कमाई का 40 परसेंट हिस्सा चला जाता है, जो अमेरिका से लगभग दोगुना है।

इकोनॉमिस्ट बंटे हुए : एनेलिस्ट कहते हैं कि ऐसी स्कीम्स यूनिवर्सल (सबके  लिए) नहीं बल्कि पीएम किसान की तरह टार्गेटेड होनी चाहिएं। हाई सोसायटी की कार चलाने वाली महिला को 2100 रुपये की रेवड़ी क्यों दी जाए। 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन.के. सिंह ने रेवड़ी को आर्थिक तबाही का रास्ता बताया है। प्रधानमंत्री मोदी भी चुनाव में मुफ्तखोरी के वादों को खतरनाक बता चुके हैं। लेकिन एक वर्ग रेवड़ी को कंजम्पशन एक्सपेंडीचर (उपभोक्ता खर्च) बढ़ाने के लिए अच्छा कदम बताता है। जिसका मानना है हाथ में पैसा होता है तो खर्च होता है जिससे कंज्यूमर डिमांड बढ़ती है और सरकार को टेक्स मिलता है।


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