मुख्य रूप से इंवेस्टमेंट लाने के लिए किया गया Rising Rajasthan इवेंट कितना सफल रहा यह अलग से बहस का विषय है लेकिन इस इवेंट में भाग लेने वालों ने प्रदेश के ट्यूरिज्म सेक्टर को जरूर बिजी रखा। होटल, ट्यूर, टैक्सी व बसे, रेस्टोरेंट आदि के लिए गुजरे 3-4 दिन Rising Rajasthan की बदौलत अच्छे रहे। इस इवेंट के चलते रणथम्भौर नेशनल पार्क के लिए 4-5 दिन ऑनलाइन बुकिंग बंद कर दी गई व कई होटलों को सिर्फ इवेंट में आए मेहमानों के लिए ही बुक किया गया था। जिस लेवल पर Rising Rajasthan इवेंट को प्लान किया गया था उसमें कुछ कमियां रहना स्वाभाविक है लेकिन इस इवेंट से एक बार फिर पता चला कि सरकार जब चाहे तब पानी की तरह पैसा बहा सकती है जिससे आर्थिक, राजनैतिक व प्रदेश के लोगों को वास्तव में क्या फायदा होता है इसे समझने-समझाने का कोई फार्मूला नहीं है इंवेस्टमेंट अगर आता है तो उसके मुख्य रूप से दो फायदे होते हैं। पहला रोजगार बढऩा और दूसरा सरकार की रेवेन्यू में बढ़ोतरी होना। हमने देखा है कि पहले कई बार हुए ऐसे इवेंट ज्यादा कुछ हासिल करने में मदद नहीं कर पाए हैं। पिछली सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद कह चुके थे कि जितने रूह्र होते हैं उनमें से 20-25 प्रतिशत ही वास्तव में जमीन पर लागू हो पाते हैं। लाखों-करोड़ों के MOU तब तक किसी काम के नहीं माने जा सकते जब तक उनमें से ज्यादातर इंवेस्टमेंट करने की दिशा में आगे न बढ़े। एक विख्यात शख्स ने कहा था कि अगर किसी को कुछ हासिल करना है तो उसे वह हासिल करने लायक बनना होगा। इसके अलावा कुछ हासिल करने का और कोई तरीका हो नहीं सकता। इसे अगर हम इंवेस्टमेंट के लिहाज से समझे तो यह समझना जरूरी है कि क्या हमारा प्रदेश व सरकार की पॉलिसी ऐसी है जो इंवेस्टमेंट को आकर्षित करने की ताकत रखती है और अगर ऐसा है तो फिर Rising Rajasthan जैसे इवेंट की जरूरत ही नहीं है। इंवेस्टमेंट करना या न करना यह तो सिम्पल रिटर्न के फार्मूले पर बेस्ड होता है और चाहे कोई भी कारोबारी हो वह इस फार्मूले के अलावा अन्य किसी बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देता भले ही वो माटी से जुडऩा हो या सरकार के फायदा देने के वादे व नीतियां हो।
अब जब यह इवेंट खत्म हो चुका है तब इसकी परिकल्पना, उपयोगिता व रिजल्ट को रिसर्च का विषय बनाया जा सकता है व किसी बाहरी एजेंसी या इकोनोमिक्स के स्टूडेंटों से यह रिसर्च करवाकर पता लगाने की कोशिश की जा सकती है कि क्या वाकई में ऐसे इवेंट राजनैतिक व सरकारी आयोजन से अलग कुछ महत्व रखते हैं। यह इवेंट करके सरकार ने क्या हासिल किया यह तो समय निकलने के साथ पता चलता जाएगा पर Common Sense के हिसाब से सरकार का अगला मिशन प्रदेश को व खुद की नीतियों को ऐसा बनाने पर फोकस होना चाहिए जिससे इंवेस्टमेंट किसी इवेंट का मोहताज न रहे बल्कि आगे चलकर इंवेस्टर खुद प्रदेश में आने को आतुर होने लगे। यह काम आसान नहीं है यह भी सच है लेकिन जिन देशों की यात्रा हमारे सरकारी अधिकारी करके आए हैं उन्होंने दुनियाभर से इंवेस्टमेंट को खींचने के लिए कैसे-कैसे Revolutionary कदम उठाए थे उस इतिहास से भी बहुत कुछ समझा जा सकता है। सिंगापुर, दुबई, चीन, बांग्लादेश, वियतनाम जैसे देशों का पिछले 25-30 सालों में जो कायापलट हुआ है उसमें बाहर से आए इंवेस्टमेंट का ही सबसे बड़ा रोल रहा है जिसके दम पर रेगिस्तान और उजड़े हुए देश आज ग्लोबल कारोबार के मुख्य केन्द्र बन चुके हैं। सरकारें प्रयास तो करती रहती है और मुख्यमंत्री खुद एक साल बाद हिसाब देकर बताने वाले है कि कितने रूह्र साकार हुए है लेकिन कुछ तो बात है जिसके कारण ये प्रयास उतने अच्छे रिजल्ट नहीं ला पाते जितनी अपेक्षा रहती है इसलिए उन कारणों को पकडक़र प्रदेश को इंवेस्टमेंट के लिए तैयार करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए जिसके बाद इंवेस्टमेंट छूटों व फायदों के सहारे नहीं बल्कि मिलने वाली रिटर्न के दम पर खुद ही अपनी मंजिल ढूंढता हुआ राजस्थान की तरफ आते दिखाई दे सकता है।