इंडियन स्टॉक मार्केट में पिछले कुछ वर्षों में इंवेस्टरों का विभिन्न ट्रेडिंग माध्यमों में शिफ्ट होने का ट्रेंड दिखाई दे रहा है। इसमें भी देखा जाए तो वर्तमान में अधिकतर ट्रेडिंग अब टेक्नोलॉजी या कहें तो एल्गो के जरिए होने लगी है। फाइनेंशियल ईयर 2024-25 में एनएसई के कैश सेगमेंट में हुई कुल ट्रेडिंग में Co-Location व Direct Market Access (DMA) के जरिए होने वाली ट्रेडिंग का शेयर बढक़र क्रमश: 36 प्रतिशत व 7 प्रतिशत के नए रिकॉर्ड लेवल्स पर पहुंच गया। इसका प्रमुख कारण प्रोपराइटरी ट्रेडर्स का बढ़ता पार्टिसिपेशन है जो आम तौर पर हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग के लिए को-लोकेशन फेसिलिटी का इस्तेमाल करते हैं। वहीं इंस्टीट्यूशनल इंवेस्टर आम तौर पर मार्केट में डायरेक्ट एक्सेस के लिए DMA का यूज करते हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले 5 वर्षों में DMA के जरिए होने वाला टर्नओवर जहां सालाना एवरेज 83 प्रतिशत की रेट से बढ़ा है वहीं को-लोकेशन फेसिलिटी के जरिए हुआ टर्नओवर इस दौरान सालाना एवरेज 29 प्रतिशत की रेट से बढ़ा है। इसी तरह मोबाइल ट्रेडिंग का शेयर भी 2024-25 में बढक़र 21 प्रतिशत हो गया जो पिछले 4 वर्ष का उच्च लेवल है। पिछले 5 वर्षों में मोबाइल प्लेटफॉर्म्स के जरिए होने वाले टर्नओवर में सालाना एवरेज 36 प्रतिशत की ग्रोथ हुई है। दिलचस्प रूप से 2024-25 में पहली बार इक्विटी कैश मार्केट सेगमेंट में एल्गो ट्रेडिंग का वॉल्यूम नॉन-एल्गो वॉल्यूम से अधिक दर्ज किया गया वहीं इक्विटी डेरिवेटिव सेगमेंट में तो कुल ट्रेडिंग टर्नओवर में तो एल्गो बेस्ड टर्नओवर का शेयर लगातार बढ़ रहा है। कुल कैश सेगमेंट ट्रेडिंग में एल्गो-बेस्ड ट्रेडिंग का शेयर जहां 2010-11 में मात्र 17 प्रतिशत था वहीं 2019-20 में यह 49 प्रतिशत व 2024-25 में और बढक़र 54 प्रतिशत के लेवल पर पहुंच गया। इसके विपरीत कुल ट्रेडिंग वोल्यूम में नॉन-एल्गो ट्रेडिंग का शेयर 2010-11 में 83 प्रतिशत के मुकाबले 2024-25 में घटकर 46 प्रतिशत ही रह गया। डेरिवेटिव सेगमेंट की बात करें तो इक्विटी फ्यूचर्स केटेगरी में को-लोकेशन व DMA का शेयर बढक़र क्रमश: 50 प्रतिशत व 16 प्रतिशत हो गया। यह ट्रेंड इक्विटी कैश सेगमेंट के समान ही है जो मार्केट में प्रोपराइटरी ट्रेडर्स व इंस्टीट्यूशनल इंवेस्टरों की अहम होती भूमिका को इंडिकेट करता है। उक्त टेक्नोलॉजिकल शिफ्ट के बीच कुल वोल्यूम में इंटरनेट बेस्ड ट्रेडिंग व CTCL/NEAT टर्मिनल्स के जरिए होने वाले वोल्यूम में कमी दर्ज की गई है। इक्विटी डेरिवेटिव केटेगरी में को-लोकेशन के जरिए होने वाली ट्रेडिंग का कुल वोल्यूम में शेयर 2010-11 में मात्र 11.5 प्रतिशत के मुकाबले 2024-25 में बढक़र 61.5 प्रतिशत हो गया।

