वेक्टर कंसल्टिंग ग्रुप ने एक व्हाइट पेपर रिपोर्ट में कहा है कि प्री-कंस्ट्रक्शन प्लानिंग, खासकर डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) चरण को मजबूत करने से नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (NIP) में लगभग 17 लाख करोड़ तक की बचत हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर इकोसिस्टम इस समय ऐसी स्थिति में है जहां सरकारी एजेंसियां, डीपीआर कंसल्टेंट और कॉन्ट्रैक्टर और सिस्टम की संरचनात्मक कमियों के कारण प्रोजेक्ट्स में देरी हो रही है जिससे लागत में बढ़ोतरी को लगभग तय है। इस स्टडी में देश की 16 बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों (जिनका रेवेन्यू 1,000 करोड़ रुपये से अधिक है) और 30 बड़ी डीपीआर कंसल्टिंग फम्र्स की लीडरशिप की राय को शामिल किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार प्रोजेक्ट के दौरान आमतौर पर लैंड और राइट-ऑफ-वे (रास्ता), डिजाइन में बदलाव, बिजली-पानी आदि यूटिलिटी से टकराव, फंडिंग में रुकावट और अप्रूवल में देरी, डीपीआर चरण में अधूरे सर्वे, पुराने बेसलाइन डेटा और डिजाइन के अधूरे वेलिडेशन के कारण देरी होती है जिससे लागत बढ़ती है। रिपोर्ट के अनुसार डीपीआर कंसल्टेंट का चयन करने का मौजूदा क्वॉलिटी एंड कॉस्ट बेस्ड सलेक्शन (Quality and Cost Based Selection QCBS) सिस्टम में ज्यादातर ध्यान सबसे कम बोली वाले डीपीआर कंसल्टेंट को चुनने पर होता है। ऐसी स्थिति में कंसल्टेंट मजबूर होकर कम बोली लगाता है, स्कोप या टाइमलाइन बढऩे पर भी कीमत नहीं बढ़ती, मार्जिन घटता है और गहन सर्वे तथा डिजाइन जांच के लिए उनके पास पैसा ही नहीं बचता। वर्तमान में भारत प्री-कंस्ट्रक्शन स्टेज पर प्रोजेक्ट कॉस्ट का केवल 0.5-1 परसेंट ही खर्च करता है। जबकि ग्लोबल लेवल पर यह लगभग 10 परसेंट है। है। वेक्टर कंसल्टिंग ग्रुप के सीनियर पार्टनर आनंदा कीर्ति के अनुसार डीपीआर स्टेज पर यदि इंवेस्टमेंट थोड़ा और बढ़ाया जाए तो लागत बढ़ोतरी बचने से कई गुना रिटर्न मिल सकते हैं। रिपोर्ट में इसके लिए पांच बड़े सुधार सुझाए गए हैं। 1. डीपीआर का आधार टाइम-एंड-मैटीरियल्स मॉडल करना, 2. इंटीग्रेटेड प्री-कंस्ट्रक्शन वॉर रूम स्थापित करना, 3. फोकस एंड फिनिश रिव्यू सिस्टम अपनाना, 4. डीपीआर-केंद्रित पीएमओ बनाना और 5. सर्वे तथा डेटा वैलिडेशन को अधिक कठोर और नियमित रूप से अपडेटेड करना।