आरबीआई ने रेपो रेट और सीआरआर में बड़ी कटौती कर बैंकिंग सिस्टम को जैकपॉट दिया है। कहते हैं करीब ढ़ाई लाख करोड़ रुपये सिस्टम में आएंगे। बैंकों की कॉस्ट ऑफ कैपिटल घटेगी। कुछ बैंकों ने कंज्यूमर लोन की रेट्स घटाई हैं। आरबीआई के इस कदम को एग्रेसिव मॉनिटरिंग ईजिंग कहा जा रहा है। लेकिन इसका फायदा दो फैक्टर पर निर्भर करेगा। पहला तो क्या बैंक क्रेडिट बढ़ाते हैं? दूसरा ट्रेड वॉर और अनिश्चित कारोबारी माहौल में क्या कंपनियां फंडिंग के लिए बैंकों के पास आएंगी? शुक्रवार को आरबीआई ने रेपो रेट में 50 बेसिस पॉइंट और कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) में 100 बेसिस पॉइंट की कटौती की थी। आरबीआई को इंफ्लेशन कमजोर पड़ जाने के कारण इस हॉटवायर का मौका मिल गया। हॉटवायर यानी जब चाबी से नहीं हो तो केबल लगाकर गाड़ी स्टार्ट करना। इसकी टाइमिंग भी बहुत अच्छी है क्योंकि मजबूत मानसून से रूरल इनकम और कंज्यूमर सेंटिमेंट में सुधार होने की उम्मीद है। लेकिन इकोनॉमी के लिए सबसे बड़े पेनपॉइंट अर्बन कंजम्पशन और प्राइवेट इंवेस्टमेंट बने हुए हैं। हालांकि सरकार और आरबीआई दोनों को एमएसएमई के लिए फंडिंग बढ़ाना एक कॉमन ग्राउंड है। वित्त वर्ष 2022-23 में भारत के जीडीपी में एमएसएमई जीवीए का शेयर 30.1 परसेंट था वहीं एक्सपोर्ट में 45.79 परसेंट शेयर था। साथ ही कुल वर्कफोर्स में एमएसएमई का शेयर 60 परसेंट है। ऐसे में देश की ओवरऑल इकोनॉमिक ग्रोथ और सेंटिमेंट के लिए एमएसएमई को सपोर्ट करना बहुत जरूरी है। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2024 तक इस सैक्टर को 16 परसेंट बैंक क्रेडिट मिला है। आरबीआई का मानना है कि बैंकों का फंड फ्री हो जाने से अर्बन डिमांड को रिवाइव करने में मदद मिलेगी, एसएमई में इंवेस्टमेंट को बढ़ावा मिलेगा इकोनॉमी के रिवाइवल की रफ्तार को तेज करने में मदद मिलेगी। आरबीआई के अनुसार केवल कंजम्पशन बढऩे से मदद नहीं मिलेगी। एसएमई में इंवेस्टमेंट बढऩे से डिमांड के जैकपॉट को अनलॉक किया जा सकता है। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने भी कहा था वे 7-8 परसेंट की एस्पिरेशनल ग्रोथ को टार्गेट कर रहे हैं। हालांकि, बैंक अक्सर एसएमई को हाई-रिस्क मानते हैं और बड़ी कंपनियों के मुकाबले इन्हें ज्यादा रेट पर लोन दिया जाता है। एसबीआई के चीफ इकोनॉमिस्ट सौम्य कांति घोष के अनुसार इस पॉलिसी से 50 से 60 हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी खर्च और निवेश के लिए उपलब्ध होगी। आरबीआई का मौजूदा फोकस कैपिटल फॉर्मेशन को गति देना है। वर्ष 2023 में अनसिक्योर्ड लोन में तेज बढ़ोतरी के बाद आरबीआई ने नियम कड़े कर दिए थे। कुछ प्राइवेंट बैंकों ने ऊंचे क्रेडिट-डिपॉजिट रेश्यो पर चिंता जताई थी। इसके बाद बैंकों ने इन सैक्टर में लोन देना कम कर दिया था बैंक क्रेडिट ग्रोथ में गिरावट आई। एक पीएसयू बैंक के अधिकारी के अनुसार बड़ी कंपनियां अभी भी कैश रिजर्व पर बैठी हैं और बॉन्ड मार्केट या विदेशी उधारी को प्राथमिकता दे रही हैं। बैंकरों के अनुसार हाउसिंग लोन, एमएसएमई लोन और गोल्ड लोन जैसे रिटेल क्रेडिट सेगमेंट में बाउंस बैक की उम्मीद है। हालांकि कुछ एनेलिस्टों ने चेतावनी दी है कि आरबीआई के इस कदम का असर केवल कंजम्पशन पर दिखेगा, प्राइवेट इंवेस्टमेंट पर नहीं।

