पशुओं पर किए गए एक नए अध्ययन में पाया गया है कि खाने-पीने की चीजों में पाए जाने वाले सूक्ष्म प्लास्टिक कण (माइक्रोप्लास्टिक) शरीर के ग्लूकोज को प्रोसेस करने की प्रक्रिया (ग्लूकोज मेटाबॉलिज़्म) को प्रभावित कर सकते हैं। इससे लिवर (यकृत) जैसे अंगों को नुकसान हो सकता है। इस अध्ययन के नतीजों से यह चिंता पैदा होती है कि जो लोग माइक्रोप्लास्टिक्स (5 मिलीमीटर से छोटे) और नैनोप्लास्टिक्स (100 नैनोमीटर से छोटे) वाले पदार्थों का सेवन कर रहे हैं, उन्हें स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। ये छोटे-छोटे प्लास्टिक कण खाने की चीजों में मिल सकते हैं, खासकर समुद्री भोजन और अन्य खाद्य पदार्थों के जरिए। गत अनुमान बताते हैं कि एक व्यक्ति प्रतिवर्ष खाने-पीने की चीजों के जरिए करीब 40,000 से 50,000 माइक्रोप्लास्टिक कण निगल सकता है। कुछ अनुमानों के मुताबिक, यह संख्या सालाना 10 लाख (1 मिलियन) कणों तक भी पहुंच सकती है। अमेरिका के डेविस शहर में स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय की पीएचडी छात्रा एमी पार्कहर्स्ट ने कहा कि हमारा यह पता लगाना कि पॉलीस्टाइरीन नैनोप्लास्टिक के शरीर में जाने से ग्लूकोज से जुड़ी गड़बड़ी और लिवर (यकृत) को नुकसान होता है। हाल ही में किए गए पशु अध्ययनों के नतीजों की पुष्टि करता है और उन्हें और आगे बढ़ाता है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने खाने-पीने की चीजों के जरिए शरीर में जाने वाले नैनोप्लास्टिक कणों पर ध्यान केंद्रित किया। शोधकर्ताओं ने 12 हफ्ते के नर चूहों को रोजाना पॉलीस्टाइरीन नैनोकणों की खुराक के साथ सामान्य चूहे वाला खाना दिया। पॉलीस्टाइरीन एक आम प्लास्टिक है, जो अक्सर खाने की पैकेजिंग और दूसरे उत्पादों में इस्तेमाल होता है। शोधकर्ताओं ने पहले के चूहों पर हुए अध्ययनों और इंसानों के संभावित संपर्क स्तर को ध्यान में रखते हुए चूहों को उनके शरीर के वजन के हिसाब से रोजाना 60 मिलीग्राम नैनोप्लास्टिक की खुराक दी। इतनी ही मात्रा में पहले भी सेहत पर असर देखा गया था। हम यह देख सके कि नैनोप्लास्टिक की खुराक बढऩे पर शरीर में क्या-क्या बदलाव होते हैं, क्योंकि ज्यादा खुराक वाले समूह में जोखिम भी ज़्यादा था।