इंडिया का को-लीविंग मार्केट तेजी से बढ़ रहा है और इसका आकार वर्ष 2030 तक 10 लाख बेड पर पहुंचने का अनुमान है। यह जानकारी जारी की गई रिपोर्ट में दी गई। कोलियर्स इंडिया की रिपोर्ट में बताया गया कि मौजूदा समय में ऑर्गेनाइज्ड मार्केट में 3 लाख को-लीविंग बेड हैं। टीयर-1 और चुनिंदा टीयर-2 शहरों में को-लीविंग बाजार तेजी से बढ़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सेक्टर में तेजी की वजह विशेष रूप से छात्रों और युवा पेशेवरों के बीच बढ़ता अर्बनाइजेशन है। को-लीविंग का टे्रंड शहरों में बढ़ रहा है। यह रोजगार या अच्छी शिक्षा की तलाश में बड़े शहरों का रुख करने वाले युवाओं को बेहतर आवास का विकल्प उपलब्ध कराता है। यह अफोर्डेबल होते हैं। इसमें एक प्राइवेट बेड होता है, किचन और लीविंग रूम आदि को अन्य के साथ साझा करना होता है। कोलियर्स इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, कोविड के दौरान डिमांड घटने के बाद को-लीविंग की मांग फिर से तेजी पकड़ रही है। रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में शहरी भारत में 20 से 34 वर्ष आयु वर्ग की अनुमानित 5 करोड़ प्रवासी आबादी है। संगठित क्षेत्र में को-लीविंग बेड की डिमांड करीब 66 लाख पर है। कोलियर्स इंडिया के सीईओ ने कहा कि भारत का को-लीविंग सेक्टर विकास के एक नए चरण में प्रवेश कर रहा है, जो मजबूत जनसांख्यिकीय बुनियादी बातों और लचीले, समुदाय-केंद्रित जीवन के लिए बढ़ती प्राथमिकता पर आधारित है। उन्होंने आगे कहा कि तेजी से बढ़ते अर्बनाइजेशन,स्टूडेंट्स एवं युवा प्रोफेशनल्स सहित प्रवासी आबादी बढऩे के साथ संगठित किराए के आवास विशेष रूप से को-लीविंग की मांग में मजबूत वृद्धि देखने को मिलेगी। रिपोर्ट में बताया गया कि प्रमुख भारतीय शहरों में को-लीविंग की जगह ज्यादा किफायती विकल्प प्रदान करती हैं। अप्रैल, 2025 में को-लीविंग की सुविधाओं और वन बीएचके के बीच तुलना से पता चलता है कि किराए में 35 प्रतिशत तक का अंतर है।