केसर का उत्पादन अधिक होने तथा सीजन पर ऊंचे भाव मिलने से लगातार कश्मीर की घाटियों से बिकवाली का प्रेशर बना हुआ है। वहीं निर्यातक, और मंदे की धारणा में माल नहीं खरीद रहे हैं, जिससे बाजार पिछले दो माह के अंतराल 40/45 रुपए प्रति ग्राम लुढक़ गया है तथा अभी शादियों की खपत को देखते हुए निकट में घटने के आसार नहीं दिखाई दे रहे हैं। वर्तमान में कश्मीर की घाटी में सुरक्षा की दृष्टि से अनुकूल वातावरण बना हुआ है, जिसके चलते पामपोर पालम द्रास कारगिल बटालिक बेगमपुरा सहित श्रीनगर के बर्फीली घाटियों से केसर के फूल की निकासी अभी चल रही है। इसके अलावा गलवान घाटी में भी इस बार फूल की निकासी अच्छी हो रही है। यही कारण है की गत 2 माह के अंतराल केसर के भाव उत्तर भारत की मंडियों में 40/45 रुपए लुढक़ कर कश्मीरी माल के 180/190 रुपए प्रति ग्राम रह गए हैं। ईरानी माल भी 130/140 रुपए प्रति ग्राम के निम्न स्तर पर आ गया है। अफगानिस्तान से भी काफी माल आ रहा है, जो पड़ते में सस्ता पड़ रहा है। वास्तविकता यह है कि मिलावटी माल भी धड़ल्ले से उत्तर भारत की मंडियों में बिक रहे हैं तथा प्रतिष्ठित कंपनियों द्वारा निर्मित माल इस समय 180/190 रुपए बिक रहे हैं तथा एक्स प्लांट में 185 रुपए तक व्यापार सुना जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि सर्दी इस बार कम जरूर पड़ रही है, लेकिन जिस तरह पहले दहशत में केसर के फूल निकलने वाले फूलों की तुड़ाई करते थे, उससे इस बार अपेक्षाकृत वहां सुरक्षा की दृष्टि से अनुकूल वातावरण मिल रहा है, जिससे अभी और निकासी तेज होने लगी है। दूसरी ओर निर्यातक वर्तमान भाव पर माल पकडऩे लगे हैं, क्योंकि शादियों की मांग चौतरफा बढ़ गई है। दूसरी ओर प्रयागराज में केसर की खपत कुंभ मेले में चल रही है। निर्यातक यह अनुमान कर रहे थे कि बाजार अभी और घटेगा, लेकिन घरेलू खपत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजारों में केसर के ऊंचे भाव होने से अब यहां और मंदे की गुंजाइश निकट में नहीं दिखाई दे रही है। गत वर्ष उत्पादन कम होने तथा पहले के सौदे यूएसए सहित अन्य देशों के पेंडिंग में होने से बाजार एक तरफा बढ़ता चला गया था, वह स्थिति इस बार नहीं है, लेकिन घटे भाव में अब निर्यात के पड़ते लगने लगे हैं। पहले के हुए सौदे काफी डिलीवरी हो चुके हैं, आगे 13 फरवरी तक माल बिका हुआ है, ऐसी चर्चा है। मंडियों में अभी माल कम बचा है, तेजी मंदी खेलने वाले कारोबारी भी अभी स्टॉक के लिए माल पकडऩे लगे हैं, जो लगातार माल काटने लगे थे। इन परिस्थितियों को देखते हुए निकट में अब और मंदे की गुंजाइश नहीं है, लेकिन तेजी आने में अभी एक महीने का समय लग सकता है।