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25-06-2025

सरकारी परचेज में MSME का घटा शेयर

  •  भारत के मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में एमएसएमई का शेयर 36-37 परसेंट है। मैन्युफैक्चरिंग एक्सपोर्ट में करीब 45 परसेंट शेयर और 27 करोड़ जॉब्स के बावजूद केंद्र सरकार की पीएसयू की परचेज में एमएसएमई का शेयर वित्त वर्ष 25 में गिर गया। सेंट्रल पीएसयू की परचेज में एमएसएमई का शेयर कोविड के बाद पहली बार गिरा है। वित्त वर्ष 25 में सीपीएसयू (केंद्र सरकार द्वारा संचालित कंपनियां) ने अपने कुल परचेज का लगभग 35 परसेंट ही एसएमई (सूक्ष्म और लघु व्यवसायों) से किया, जो वित्त वर्ष 23 के 37 परसेंट के बाद सबसे कम है। परचेज में ट्रांसपेरेंसी लाने के लिए केंद्र ने सरकारी विभागों और कंपनियों के लिए खरीद प्रक्रिया को डिजिटल कर दिया है। इसके अलावा छोटे व्यवसायों और उद्यमियों को समर्थन देने के लिए एमएसएमई से परचेज को प्रमोट किया जा रहा है। एमएसएमई मंत्रालय के संबध पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार सीपीएसयू द्वारा वित्त वर्ष 25 में कुल 2.6 लाख करोड़ रुपये की परचेज की गई जो वित्त वर्ष 24 में 1.7 लाख करोड़ रुपये ही थी।  हालांकि इस दौरान एमएसएमई से परचेज की वैल्यू वित्त वर्ष 25 में 91,343 करोड़ रुपये तक पहंच गई जो वित्त वर्ष 24 में 74,728 करोड़ रुपये ही थी लेकिन सीपीएसयू की कुल परचेज में एमएसएमई का शेयर गिर गया। केंद्र सरकार की सार्वजनिक खरीद नीति के अनुसार एक चौथाई परचेज एमएसएमई से होनी चाहिए। आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 21 के बाद लगातार चार साल तक ग्रोथ होने के परचेज में एमएसएमई के शेयर में गिरावट आई है। कोविड के दौरान इकोनॉमिक स्लोडाउन के चलते सीपीएसयू की कुल परचेज में एमएसएमई का शेयर केवल 28 परसेंट कह गया था हालांकि इसके बाद के सालों में इसमें लगातार ग्रोथ हुई। वित्त वर्ष22 में 33 परसेंट, वित्त वर्ष23 में 37 परसेंट, और वित्त वर्ष24 में लगभग 44 परसेंट शेयर रहा था जो वित्त वर्ष25 में घटकर 35 परसेंट रह गया। डेटा के अनुसार वित्त वर्ष25 में एमएसएमई से परचेज करने वाले सीपीएसयू की संख्या भी 158 से घटकर 141 रह गई। डेलॉय इंडिया के एक्जेक्टिव डायरेक्टर समीर गोगिया के अनुसार एमएसएमई से परचेज में गिरावट संभवत: 2024 के आम चुनावों के कारण खरीद में देरी के चलते हुई है। चुनावों के दौरान सरकार को सभी सार्वजनिक खरीद रोकनी होती हैं। यह गिरावट यह भी संकेत देती है कि सरकार ने बड़ी फर्मों से परचेज बढ़ाई है। बड़ी फम्र्स जिन्होंने इकोनॉमी ऑफ स्केल हासिल कर लिया है उनकी प्राइस स्मॉल एंड माइक्रो यूनिट्स के मुकाबले प्रतिस्पर्धी होती हैं। 

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सरकारी परचेज में MSME का घटा शेयर

 भारत के मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर में एमएसएमई का शेयर 36-37 परसेंट है। मैन्युफैक्चरिंग एक्सपोर्ट में करीब 45 परसेंट शेयर और 27 करोड़ जॉब्स के बावजूद केंद्र सरकार की पीएसयू की परचेज में एमएसएमई का शेयर वित्त वर्ष 25 में गिर गया। सेंट्रल पीएसयू की परचेज में एमएसएमई का शेयर कोविड के बाद पहली बार गिरा है। वित्त वर्ष 25 में सीपीएसयू (केंद्र सरकार द्वारा संचालित कंपनियां) ने अपने कुल परचेज का लगभग 35 परसेंट ही एसएमई (सूक्ष्म और लघु व्यवसायों) से किया, जो वित्त वर्ष 23 के 37 परसेंट के बाद सबसे कम है। परचेज में ट्रांसपेरेंसी लाने के लिए केंद्र ने सरकारी विभागों और कंपनियों के लिए खरीद प्रक्रिया को डिजिटल कर दिया है। इसके अलावा छोटे व्यवसायों और उद्यमियों को समर्थन देने के लिए एमएसएमई से परचेज को प्रमोट किया जा रहा है। एमएसएमई मंत्रालय के संबध पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार सीपीएसयू द्वारा वित्त वर्ष 25 में कुल 2.6 लाख करोड़ रुपये की परचेज की गई जो वित्त वर्ष 24 में 1.7 लाख करोड़ रुपये ही थी।  हालांकि इस दौरान एमएसएमई से परचेज की वैल्यू वित्त वर्ष 25 में 91,343 करोड़ रुपये तक पहंच गई जो वित्त वर्ष 24 में 74,728 करोड़ रुपये ही थी लेकिन सीपीएसयू की कुल परचेज में एमएसएमई का शेयर गिर गया। केंद्र सरकार की सार्वजनिक खरीद नीति के अनुसार एक चौथाई परचेज एमएसएमई से होनी चाहिए। आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 21 के बाद लगातार चार साल तक ग्रोथ होने के परचेज में एमएसएमई के शेयर में गिरावट आई है। कोविड के दौरान इकोनॉमिक स्लोडाउन के चलते सीपीएसयू की कुल परचेज में एमएसएमई का शेयर केवल 28 परसेंट कह गया था हालांकि इसके बाद के सालों में इसमें लगातार ग्रोथ हुई। वित्त वर्ष22 में 33 परसेंट, वित्त वर्ष23 में 37 परसेंट, और वित्त वर्ष24 में लगभग 44 परसेंट शेयर रहा था जो वित्त वर्ष25 में घटकर 35 परसेंट रह गया। डेटा के अनुसार वित्त वर्ष25 में एमएसएमई से परचेज करने वाले सीपीएसयू की संख्या भी 158 से घटकर 141 रह गई। डेलॉय इंडिया के एक्जेक्टिव डायरेक्टर समीर गोगिया के अनुसार एमएसएमई से परचेज में गिरावट संभवत: 2024 के आम चुनावों के कारण खरीद में देरी के चलते हुई है। चुनावों के दौरान सरकार को सभी सार्वजनिक खरीद रोकनी होती हैं। यह गिरावट यह भी संकेत देती है कि सरकार ने बड़ी फर्मों से परचेज बढ़ाई है। बड़ी फम्र्स जिन्होंने इकोनॉमी ऑफ स्केल हासिल कर लिया है उनकी प्राइस स्मॉल एंड माइक्रो यूनिट्स के मुकाबले प्रतिस्पर्धी होती हैं। 


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