पिछले सप्ताह बड़ी गर्मा-गर्मी हो गई। गोदी मीडिया और गांधी मीडिया भिड़ पड़ा। पिछले वित्त वर्ष में 81 बिलियन डलर का एफडीआई भारत आया लेकिन नेट एफडीआई (आउटफ्लो और आउटवर्ड रेमिटेंस को घटाने के बाद) वित्त वर्ष 23-24 के 10.1 बिलियन डॉलर से घटकर केवल 0.4 बिलियन डॉलर रह गया। हालांकि इसका बड़ा कारण आईपीओ के जरिए इंवेस्टर्स (जैसे ह्यूंदे मोटर कंपनी का ह्यूंदे मोटर इंडिया लि. से) में स्टेक घटाना रहा। लेकिन खबर आई तो दोनों गुटों में जैसे फुल ब्लोन वॉर ही छिड़ गया और ऐं-बैं बकने वाले प्रवक्ताओं को कोल्ड स्टोरेज से निकालकर तैनात करना पड़ गया। सरकार का यह भी कहना है कि भारत की कंपनियां नए मार्केट्स की तलाश में विदेशों में कैपेक्स बढ़ा रही हैं इससे भी नेट एफडीआई में गिरावट आई है। आरबीआई के अनुसार वित्त वर्ष 24 में फॉरेन इंवेस्टर्स ने 41 बिलियन डॉलर निकाले थे और वित्त वर्ष 25 में 49 बिलियन डॉलर। खैर...मामला यह है कि भारत सरकार ने विदेशों में अपनी दूतावासों को एफडीआई बढ़ाने का बड़ा टार्गेट दे दिया है। सरकार का मानना है कि एफडीआई बढ़ाने के लिए दूतावासों का स्ट्रेटेजिक इस्तेमाल किया जाना चाहिए। आप जानते हैं कोविड के दौरान वर्ष 21 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूतावासों के अधिकारियों की वर्चुअल मीटिंग लेकर एक्सपोर्ट बढ़ाने का भी टार्गेट दिया था। लगातार तीन वर्ष से भारत के एफडीआई में गिरावट आ रही है और दूतावासों के जरिए गिरावट के इस ट्रेंड को रोकने की कोशिश की जा रही है। कॉमर्स मिनिस्ट्री ने इसके लिए विदेशों में मौजूद भारत के 100 से वाणिज्य दूतावासों को यह काम सौंपा है। वाणिज्य दूतावास आमतौर पर एक्सपोर्ट बढ़ाने के काम देखते हैं लेकिन अब इन्हें फॉरेन इंवेस्टर्स के साथ भी को-ऑर्डिनेट करना है। कॉमर्स मिनिस्ट्री ने कहा है कि कॉन्सुलेट यानी वाणिज्य दूतावास भारत और फॉरेन इंवेस्टर्स के बीच सेतु का काम करेंगे। इसके लिए इंवेस्टर्स समिट, रोड शो और बिजनस-टू-बिजनस (बी2बी) मीटिंग आयोजित की जाएंगी। हालांकि एफडीआई इन्फ्लो घटने का सबसे बड़ा कारण रूस-यूक्रेन वॉर और खाड़ी में तनाव को बताया जा रहा है। लेकिन पिछले अमेरिका और यूरोप के फंड्स 2500 लाख करोड़ रुपये के कैश पर बैठे हैं क्योंकि उनका मानना है कि इंवेस्टमेंट के मौके कम हो रहे हैं। कॉमर्स मिनिस्ट्री एफडीआई प्रमोशन पॉलिसी पर भी काम कर रही है जिसके तहत एक एफडीआई प्रमोशन एजेंसी के साथ ही सिंगल विंडो भी स्थापित की जाएगी। भारत सरकार ने डिफेंस, प्रेशीजन इंजीनियरिंग, केमिकल्स, फार्मा, टेक्सटाइल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, फूड प्रॉसेसिंग, रिन्यूएबल एनर्जी, आईटी और ऑटोमोबाइल आदि को टार्गेट सैक्टर के रूप में चुना है।
