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02-12-2025

थकान और सांस फूलना हो सकता है एनीमिया का संकेत

  • अगर आपको अक्सर थकान, चक्कर, सांस फूलना या चेहरे पर पीलापन महसूस होता है, तो यह रक्ताल्पता (एनीमिया) का संकेत हो सकता है। मेडिकल भाषा में इसे हीमोग्लोबिन की कमी कहा जाता है, जबकि आयुर्वेद में इसे पाण्डु रोग कहा जाता है। यह सिर्फ शरीर को कमजोर नहीं करता, बल्कि मानसिक ऊर्जा, कार्यक्षमता और रोग प्रतिरोधक क्षमता पर भी असर डालता है। रक्ताल्पता का मतलब शरीर में लाल रक्त कणिकाओं या हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होना है। हीमोग्लोबिन शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है। जब यह कम हो जाता है तो अंगों तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती और व्यक्ति थका हुआ और कमजोर महसूस करता है। आयुर्वेद कहता है कि पाण्डु रोग में शरीर का रंग पीला दिखता है, हृदय धडक़न तेज रहती है और व्यक्ति आलसी महसूस करता है। रक्ताल्पता के लक्षणों में चेहरे और होंठों का पीला पडऩा, चक्कर आना, जल्दी थकना, हृदय की तेज धडक़न, हाथ-पांव ठंडे रहना, सांस फूलना, बाल झडऩा और नाखून टूटना शामिल हैं। इसके मुख्य कारणों में आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी12 की कमी, बार-बार रक्तस्राव, खराब पाचन, कृमि रोग, अत्यधिक तनाव और असंतुलित जीवनशैली शामिल हैं। आयुर्वेद के अनुसार, जब पाचन अग्नि कमजोर होती है, तो पोषक तत्व शरीर तक सही ढंग से नहीं पहुंच पाते, जिससे रक्त उत्पादन कम हो जाता है। रक्ताल्पता को दूर करने के लिए कई आयुर्वेदिक घरेलू उपाय हैं। रोज सुबह खाली पेट आंवले का रस पीने से विटामिन सी मिलता है और आयरन अवशोषण बढ़ता है। गुड़ और तिल के लड्डू खाएं, पालक, मेथी, चौलाई और सरसों के पत्तों का सूप लें। रात को मुनक्का और खजूर भिगोकर सुबह खाएं। अश्वगंधा और शतावरी दूध के साथ लेने से रक्त उत्पादन बढ़ता है। चुकंदर और गाजर का रस पीना भी लाभकारी है। गिलोय और पुनर्नवा जैसी जड़ी-बूटियां रक्त को शुद्ध करती हैं और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती हैं। जीवनशैली में भी सुधार जरूरी है। समय पर हल्का और पचने योग्य भोजन करें, दूध, दही, हरी सब्जियां और फल शामिल करें, देर रात तक जागने से बचें और पर्याप्त नींद लें। योग और प्राणायाम जैसे अनुलोम-विलोम और कपालभाति रक्त संचार को सुधारते हैं।

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थकान और सांस फूलना हो सकता है एनीमिया का संकेत

अगर आपको अक्सर थकान, चक्कर, सांस फूलना या चेहरे पर पीलापन महसूस होता है, तो यह रक्ताल्पता (एनीमिया) का संकेत हो सकता है। मेडिकल भाषा में इसे हीमोग्लोबिन की कमी कहा जाता है, जबकि आयुर्वेद में इसे पाण्डु रोग कहा जाता है। यह सिर्फ शरीर को कमजोर नहीं करता, बल्कि मानसिक ऊर्जा, कार्यक्षमता और रोग प्रतिरोधक क्षमता पर भी असर डालता है। रक्ताल्पता का मतलब शरीर में लाल रक्त कणिकाओं या हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होना है। हीमोग्लोबिन शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है। जब यह कम हो जाता है तो अंगों तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती और व्यक्ति थका हुआ और कमजोर महसूस करता है। आयुर्वेद कहता है कि पाण्डु रोग में शरीर का रंग पीला दिखता है, हृदय धडक़न तेज रहती है और व्यक्ति आलसी महसूस करता है। रक्ताल्पता के लक्षणों में चेहरे और होंठों का पीला पडऩा, चक्कर आना, जल्दी थकना, हृदय की तेज धडक़न, हाथ-पांव ठंडे रहना, सांस फूलना, बाल झडऩा और नाखून टूटना शामिल हैं। इसके मुख्य कारणों में आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन बी12 की कमी, बार-बार रक्तस्राव, खराब पाचन, कृमि रोग, अत्यधिक तनाव और असंतुलित जीवनशैली शामिल हैं। आयुर्वेद के अनुसार, जब पाचन अग्नि कमजोर होती है, तो पोषक तत्व शरीर तक सही ढंग से नहीं पहुंच पाते, जिससे रक्त उत्पादन कम हो जाता है। रक्ताल्पता को दूर करने के लिए कई आयुर्वेदिक घरेलू उपाय हैं। रोज सुबह खाली पेट आंवले का रस पीने से विटामिन सी मिलता है और आयरन अवशोषण बढ़ता है। गुड़ और तिल के लड्डू खाएं, पालक, मेथी, चौलाई और सरसों के पत्तों का सूप लें। रात को मुनक्का और खजूर भिगोकर सुबह खाएं। अश्वगंधा और शतावरी दूध के साथ लेने से रक्त उत्पादन बढ़ता है। चुकंदर और गाजर का रस पीना भी लाभकारी है। गिलोय और पुनर्नवा जैसी जड़ी-बूटियां रक्त को शुद्ध करती हैं और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती हैं। जीवनशैली में भी सुधार जरूरी है। समय पर हल्का और पचने योग्य भोजन करें, दूध, दही, हरी सब्जियां और फल शामिल करें, देर रात तक जागने से बचें और पर्याप्त नींद लें। योग और प्राणायाम जैसे अनुलोम-विलोम और कपालभाति रक्त संचार को सुधारते हैं।


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