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23-08-2025

देसी चने का मंदा फिर रुकने की संभावना, घटने का कोई ठोस लॉजिक नहीं

  •  उत्पादक मंडियों में देसी चना यहां की तुलना में ऊंचे चल रहे हैं, क्योंकि वहां आवक टूट गई है। फिलहाल चालू माह के अंतराल ग्राहकी कमजोर होने तथा पिछले दिनों की आई तेजी के बाद मुनाफा वसूली बिकवाली से ऊपर के भाव से 300 रुपए प्रति क्विंटल की गिरावट आ गई है, लेकिन यहां से फिर मंदा रुककर बढऩे के आसार दिखाई दे रहे हैं तथा दिवाली से पहले देसी चना 6500 पुन: बन सकता है। किसी भी मंडी से आज की तारीख में माल मंगाने पर मिलना मुश्किल है। पाइप लाइन में देसी चना बहुत कम बचा है, ऑस्ट्रेलिया का भी काफी माल निपट गया है। देसी चना उत्पादक मंडियों से नीचे भाव पर पिछले कई महीनो से बिक रहा है। धीरे-धीरे वितरक मंडियों के माल भी निपट चुके हैं, दाल मिलें पहले से ही खाली चल रही थी, जिससे शॉर्टेज बनते ही इसमें पिछले दिनों देशी चना 6450/6475 रुपए प्रति क्विंटल ऊपर में बन गया था, लेकिन एक साथ आई तेजी के बाद चालू माह के अंतराल मुनाफा वसूली बिकवाली पिछले एक पखवाड़े से चल रही है, जिससे बाजार धीरे-धीरे घटकर आज 6200 रुपए प्रति कुंतल लॉरेंस रोड पर खड़ी मोटर में रह गया है। दाल के भाव 7050/7150 रुपए क्वालिटी अनुसार बोलने लगे हैं। अक्टूबर-नवंबर शिपमेंट का काला चना ऑस्ट्रेलिया का काफी पड़ते में मिल रहा है, लेकिन वह नवंबर-दिसंबर से पहले नहीं आएगा, उससे पहले आगे औने-पौने भाव में देसी चना कट जाएगा। देसी चने की आपूर्ति राजस्थान के नोहर भादरा, सवाई माधोपुर, सरदारशहर, तारानगर के साथ-साथ महाराष्ट्र के अकोला जलगांव एवं मध्य प्रदेश के ग्वालियर इंदौर शिवपुरी कटनी भोपाल आदि किसी भी मंडी में केवल 10-12 प्रतिशत रह गई है। देसी चना किसी भी उत्पादक मंडियों से आज की तारीख में दिल्ली मंगाने पर 6350 से कम नहीं पड़ रहा है। इसके अलावा माल की घटती अलग है, लेकिन यहां 6200/6225 रुपए आज बोलने लगे हैं। हालांकि इन भाव में दाल मिलों को बढिय़ा माल नहीं मिल पाया। गौरतलब है कि ऑस्ट्रेलिया में भी इस बार काले चने की बिजाई पिछले दो-तीन वर्षों की अपेक्षा कम सुनने में आ रही है, लेकिन सटोरिए अक्टूबर-नवंबर शिपमेंट के सौदे गत वर्ष की अपेक्षा काफी सस्ता बोलने लगे हैं, जिस कारण छोटे कारोबारियों के माल औने-पौने भाव में कट चुके हैं। देसी चने का उत्पादन इस पर 80 लाख मीट्रिक टन के करीब हुआ था, जबकि हमारे खपत 115 लाख मीट्रिक टन की है। अत: दोबारा 6500 रुपए जंचता है।

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देसी चने का मंदा फिर रुकने की संभावना, घटने का कोई ठोस लॉजिक नहीं

 उत्पादक मंडियों में देसी चना यहां की तुलना में ऊंचे चल रहे हैं, क्योंकि वहां आवक टूट गई है। फिलहाल चालू माह के अंतराल ग्राहकी कमजोर होने तथा पिछले दिनों की आई तेजी के बाद मुनाफा वसूली बिकवाली से ऊपर के भाव से 300 रुपए प्रति क्विंटल की गिरावट आ गई है, लेकिन यहां से फिर मंदा रुककर बढऩे के आसार दिखाई दे रहे हैं तथा दिवाली से पहले देसी चना 6500 पुन: बन सकता है। किसी भी मंडी से आज की तारीख में माल मंगाने पर मिलना मुश्किल है। पाइप लाइन में देसी चना बहुत कम बचा है, ऑस्ट्रेलिया का भी काफी माल निपट गया है। देसी चना उत्पादक मंडियों से नीचे भाव पर पिछले कई महीनो से बिक रहा है। धीरे-धीरे वितरक मंडियों के माल भी निपट चुके हैं, दाल मिलें पहले से ही खाली चल रही थी, जिससे शॉर्टेज बनते ही इसमें पिछले दिनों देशी चना 6450/6475 रुपए प्रति क्विंटल ऊपर में बन गया था, लेकिन एक साथ आई तेजी के बाद चालू माह के अंतराल मुनाफा वसूली बिकवाली पिछले एक पखवाड़े से चल रही है, जिससे बाजार धीरे-धीरे घटकर आज 6200 रुपए प्रति कुंतल लॉरेंस रोड पर खड़ी मोटर में रह गया है। दाल के भाव 7050/7150 रुपए क्वालिटी अनुसार बोलने लगे हैं। अक्टूबर-नवंबर शिपमेंट का काला चना ऑस्ट्रेलिया का काफी पड़ते में मिल रहा है, लेकिन वह नवंबर-दिसंबर से पहले नहीं आएगा, उससे पहले आगे औने-पौने भाव में देसी चना कट जाएगा। देसी चने की आपूर्ति राजस्थान के नोहर भादरा, सवाई माधोपुर, सरदारशहर, तारानगर के साथ-साथ महाराष्ट्र के अकोला जलगांव एवं मध्य प्रदेश के ग्वालियर इंदौर शिवपुरी कटनी भोपाल आदि किसी भी मंडी में केवल 10-12 प्रतिशत रह गई है। देसी चना किसी भी उत्पादक मंडियों से आज की तारीख में दिल्ली मंगाने पर 6350 से कम नहीं पड़ रहा है। इसके अलावा माल की घटती अलग है, लेकिन यहां 6200/6225 रुपए आज बोलने लगे हैं। हालांकि इन भाव में दाल मिलों को बढिय़ा माल नहीं मिल पाया। गौरतलब है कि ऑस्ट्रेलिया में भी इस बार काले चने की बिजाई पिछले दो-तीन वर्षों की अपेक्षा कम सुनने में आ रही है, लेकिन सटोरिए अक्टूबर-नवंबर शिपमेंट के सौदे गत वर्ष की अपेक्षा काफी सस्ता बोलने लगे हैं, जिस कारण छोटे कारोबारियों के माल औने-पौने भाव में कट चुके हैं। देसी चने का उत्पादन इस पर 80 लाख मीट्रिक टन के करीब हुआ था, जबकि हमारे खपत 115 लाख मीट्रिक टन की है। अत: दोबारा 6500 रुपए जंचता है।


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