पिछले एक माह के अंतराल लिक्विड दूध की आपूर्ति में कमी के बावजूद घरेलू व निर्यात मांग घट जाने से दूध पाउडर में 15 रुपए प्रति किलो की गिरावट आ चुकी है। वहीं देसी ही अंदर रेट बिक रहे हैं, लेकिन कंपनियां अभी घटा नहीं रही है, क्योंकि सभी कंपनियों में फैट की कमी है तथा प्लांट चलने में 3 महीने से ऊपर का समय बाकी है, इन परिस्थितियों में दूध पाउडर में जान तो नहीं लग रही है, लेकिन देसी घी मंदा नहीं होगा। गत जून के प्रारंभ में लिक्विड दूध की आपूर्ति 85-86 लाख लीटर दैनिक का अनुमान लगाया गया था, जो वर्तमान में घटकर 59-60 लाख लीटर दैनिक उत्तर भारत के प्लांटों में रह गया है। वहीं डेयरी प्रोडक्ट की बिक्री एक महीने से काफी कमजोर होने तथा दक्षिण भारत के दूध पाउडर जो 290/295 रुपए प्रति किलो दिल्ली एनसीआर में आकर बिक रहे थे, उसके भाव लुढक़ कर 250/255 रुपए उत्तर भारत की मंडियों में पहुंच में रह गए। इस वजह से उत्तर भारत की कंपनियों को भी ग्राहकी के अभाव में भाव तोडक़र व्यापार करना पड़ा। हरबंस लाल फूड्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर वीरेंद्र कुमार गुप्ता ने बताया कि लिक्विड दूध में कमी के बावजूद भी दूध पाउडर नहीं बिकने से लिक्विड के भाव उक्त एक माह के अंतराल 61/62 रुपए घटकर 55-56 रुपए प्रति लीटर रह गए हैं। इधर दूध पाउडर भी प्रीमियम क्वालिटी का जो 325/330 रुपए प्रति किलो बिक रहा था, उसके भाव गिरकर 300/310 रुपए के निम्न स्तर पर आ गए हैं तथा इन भावों में भी कोई विशेष व्यापार नहीं हो रहा है। जून के प्रथम सप्ताह के बाद शादियां बंद हो गई, इसके अलावा लिक्विड दूध भी, प्लांट मेंटिनेस में चले जाने से सरप्लस में होने लगा है। उधर निर्यात मांग पूरी तरह ठंडी पड़ गई, क्योंकि महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु में दूध पाउडर 220 230 रुपए प्रति किलो के बीच चल रहे हैं। जो भारतीय बंदरगाहों से पड़ते में निर्यात हो रहे हैं। उत्तर भारत की कंपनियों को लिक्विड दूध महंगा खरीद करने से पड़ते नहीं लग रहे हैं। इस वजह से 15 रुपए प्रति किलो घटकर एक माह के अंतराल 300 310 रुपए रह गए तथा इन भावों में भी कोई विशेष व्यापार नहीं हो रहा है। इस बार बाजार अनुमान के अनुरूप नहीं उठने का यह भी कारण है कि हर तीन-चार दिन गर्मी के बाद मौसम ठंडा हो जाने से लिक्विड दूध की खपत घट जाती है। हम मानते हैं कि जुलाई अगस्त में दूध पाउडर की खपत अधिक रहने वाली है, लेकिन दूध पाउडर भी कंपनियों के पास है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी एवं रक्षाबंधन में मावा पनीर की अधिक खपत होती है, इस वजह से मंदा तो रुक जाएगा, लेकिन अब लंबी तेजी का कोई लॉजिक नहीं लग रहा है। श्री गुप्ता ने बताया कि मिलावटी माल, देसी घी के व्यापार को परेशान जरूर कर रहे हैं, लेकिन कंपनियों में बटर का स्टॉक काफी घट जाने से इसमें मंदे की गुंजाइश नहीं दिखाई दे रही है, भले ही कंपनियों के माल अंडर रेट में बिक रहे हैं। उसकी वजह नामी गिरामी कंपनियां को भी, मिलावटिए नहीं छोड़ रहे हैं, इन परिस्थितियों में जितना बाजार बढऩा चाहिए था, उतना बढऩा मुश्किल लग रहा है, लेकिन प्लांट चलने में लंबा समय होने से अभी इसमें 200/300 रुपए प्रति टीन की और तेजी लग रही है।