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12-06-2025

सुपर बिल्ट अप और कार्पेट एरिया के बीच बढ़ता जा रहा है फासला

  •  प्रमुख शहरों के रेजीडेंशियल प्रोजेक्ट्स में साझा सुविधाएं मुहैया कराने के नाम पर बिल्डरों ने एवरेज लोडिंग को 40 प्रतिशत तक पहुंचा दिया है जिससे पिछले कुछ वर्षों में फ्लैट के भीतर इस्तेमाल लायक जगह काफी कम हो गई है। एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। किसी रेजीडेंशियल प्रोजेक्ट में साझा सुविधाओं के लिए इस्तेमाल हुई जमीन को भी जोडक़र फ्लैट की सेल की जाती है। इस संपूर्ण क्षेत्रफल को सुपर बिल्टअप एरिया कहा जाता है जबकि फ्लैट के भीतर की जगह कार्पेट एरिया कही जाती है। इन दोनों के बीच के अंतर पर लोडिंग रेश्यो कहा जाता है। रियल एस्टेट सलाहकार फर्म एनारॉक की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2019 में एवरेज लोडिंग रेश्यो 31 प्रतिशत था लेकिन जनवरी-मार्च 2025 की तिमाही में यह बढक़र 40 प्रतिशत पर पहुंच गया। इसका मतलब है कि फ्लैट मालिकों को अब रहने लायक कम जगह मिल रही है और वे साझा सुविधाओं के नाम पर अधिक पैसे चुका रहे हैं। एनारॉक ग्रुप के क्षेत्रीय निदेशक और प्रमुख (शोध एवं परामर्श) प्रशांत ठाकुर ने कहा, हालांकि नियामक रेरा के तहत अब डेवलपरों के लिए घर खरीदने वालों को दिए जाने वाले कुल कार्पेट एरिया का उल्लेख करना जरूरी है लेकिन फिलहाल किसी भी कानून में प्रोजेक्ट्स के लोडिंग फैक्टर को सीमित नहीं किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश के शीर्ष सात शहरों में घर खरीदने वालों का अपने फ्लैट की कुल जगह का 60 प्रतिशत हिस्सा ही रहने लायक है जबकि शेष 40 प्रतिशत क्षेत्र लिफ्ट, लॉबी, सीढय़िां, क्लब हाउस, सुविधाएं एवं छत जैसी साझा सुविधाओं में चली जाती हैं। शीर्ष सात शहरों में बेंगलुरु ने पिछले सात वर्षों में एवरेज लोडिंग में सबसे अधिक प्रतिशत वृद्धि देखी है। वर्ष 2019 में औसत लोडिंग 30 प्रतिशत थी जो 2025 की पहली तिमाही में 41 प्रतिशत तक पहुंच गई। हालांकि सबसे अधिक 43 प्रतिशत लोडिंग मुंबई महानगर क्षेत्र में रही। यहां पर 2019 में भी लोडिंग 33 प्रतिशत के साथ सर्वाधिक थी। दूसरी ओर, चेन्नई में एवरेज लोडिंग वृद्धि सबसे कम रही है। 2019 में चेन्नई का औसत लोडिंग प्रतिशत 30 प्रतिशत था जो मार्च 2025 में 36 प्रतिशत तक पहुंचा। दिल्ली-एनसीआर बाजार में एवरेज लोडिंग प्रतिशत 2019 के 31 प्रतिशत से बढक़र मार्च तिमाही में 41 प्रतिशत तक पहुंच गया। पुणे में यह 32 प्रतिशत से बढक़र  40 प्रतिशत, हैदराबाद में 30 प्रतिशत से बढक़र 38 प्रतिशत और कोलकाता में 30 प्रतिशत से बढक़र 39 प्रतिशत हो गया।

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सुपर बिल्ट अप और कार्पेट एरिया के बीच बढ़ता जा रहा है फासला

 प्रमुख शहरों के रेजीडेंशियल प्रोजेक्ट्स में साझा सुविधाएं मुहैया कराने के नाम पर बिल्डरों ने एवरेज लोडिंग को 40 प्रतिशत तक पहुंचा दिया है जिससे पिछले कुछ वर्षों में फ्लैट के भीतर इस्तेमाल लायक जगह काफी कम हो गई है। एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। किसी रेजीडेंशियल प्रोजेक्ट में साझा सुविधाओं के लिए इस्तेमाल हुई जमीन को भी जोडक़र फ्लैट की सेल की जाती है। इस संपूर्ण क्षेत्रफल को सुपर बिल्टअप एरिया कहा जाता है जबकि फ्लैट के भीतर की जगह कार्पेट एरिया कही जाती है। इन दोनों के बीच के अंतर पर लोडिंग रेश्यो कहा जाता है। रियल एस्टेट सलाहकार फर्म एनारॉक की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2019 में एवरेज लोडिंग रेश्यो 31 प्रतिशत था लेकिन जनवरी-मार्च 2025 की तिमाही में यह बढक़र 40 प्रतिशत पर पहुंच गया। इसका मतलब है कि फ्लैट मालिकों को अब रहने लायक कम जगह मिल रही है और वे साझा सुविधाओं के नाम पर अधिक पैसे चुका रहे हैं। एनारॉक ग्रुप के क्षेत्रीय निदेशक और प्रमुख (शोध एवं परामर्श) प्रशांत ठाकुर ने कहा, हालांकि नियामक रेरा के तहत अब डेवलपरों के लिए घर खरीदने वालों को दिए जाने वाले कुल कार्पेट एरिया का उल्लेख करना जरूरी है लेकिन फिलहाल किसी भी कानून में प्रोजेक्ट्स के लोडिंग फैक्टर को सीमित नहीं किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश के शीर्ष सात शहरों में घर खरीदने वालों का अपने फ्लैट की कुल जगह का 60 प्रतिशत हिस्सा ही रहने लायक है जबकि शेष 40 प्रतिशत क्षेत्र लिफ्ट, लॉबी, सीढय़िां, क्लब हाउस, सुविधाएं एवं छत जैसी साझा सुविधाओं में चली जाती हैं। शीर्ष सात शहरों में बेंगलुरु ने पिछले सात वर्षों में एवरेज लोडिंग में सबसे अधिक प्रतिशत वृद्धि देखी है। वर्ष 2019 में औसत लोडिंग 30 प्रतिशत थी जो 2025 की पहली तिमाही में 41 प्रतिशत तक पहुंच गई। हालांकि सबसे अधिक 43 प्रतिशत लोडिंग मुंबई महानगर क्षेत्र में रही। यहां पर 2019 में भी लोडिंग 33 प्रतिशत के साथ सर्वाधिक थी। दूसरी ओर, चेन्नई में एवरेज लोडिंग वृद्धि सबसे कम रही है। 2019 में चेन्नई का औसत लोडिंग प्रतिशत 30 प्रतिशत था जो मार्च 2025 में 36 प्रतिशत तक पहुंचा। दिल्ली-एनसीआर बाजार में एवरेज लोडिंग प्रतिशत 2019 के 31 प्रतिशत से बढक़र मार्च तिमाही में 41 प्रतिशत तक पहुंच गया। पुणे में यह 32 प्रतिशत से बढक़र  40 प्रतिशत, हैदराबाद में 30 प्रतिशत से बढक़र 38 प्रतिशत और कोलकाता में 30 प्रतिशत से बढक़र 39 प्रतिशत हो गया।


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